- खून के आंसू रोने विवश गौ माता

घटिया दवाओं से बढ़ी मृत्युदर, दवा निर्माता पर कार्रवाई के बजाए किया उपकृत, गौसेवकों का आरोप मृत पशु ढ़ोने प्रारंभ की एंबुलेंस
भोपाल। हालहीं में प्रदेश शासन द्वारा गौपूजन कर पशु एंबुलेंस प्रारंभ करने के साथ गौ पालकों को 9 सौ रुपए प्रति माह देने की घोषणा की गई। दावा किया गया कि अब बीमार एवं घायल गौवंश को इलाज मुहैया कराने फोन पर एंबुलेंस मुहैया होगी। प्रदेश के अधिकांश गौ-पालकों और खास तौर पर गौसेवकों का आरोप है प्रदेश शासन के लिए गाय और गौशाला मात्र चुनावों के लिए एक मुद्दे से बढ़कर कोई महत्व नहीं रखती हैं। स्वयं गौसेवकों का आरोप है कि गाय के नाम पर चल रहे कथित बोर्ड और शासकीय निकाय गौ सेवा के नाम पर चांदी काट रहे हैं। गौपालकों ने बताया कि प्रदेश भर में शासन के माध्यम से जिन दवाओं की गौवंशीय पशुओं के लिए आपूर्ति की जा रही है वे घटिया और अमानक स्तर की हैं। कथित तौर पर अमानक और नकली दवाओं की मार के चलते अब भी प्रदेश में गौवंशीय पशु खून के आंसू रोने विवश हैं। पहले बजट में गौवंश के भोजन में कटौती इसके बाद उन्हें गुणवत्ता विहीन दवाओं की आपूर्ति और दो वर्ष पूर्व मुद्दा प्रकाश में आने के बाद विवादित कंपनी को क्लीन चिट देकर पुन: आपूर्ति का जिम्मा सौंपा जाने कहीं न कहीं गौ सेवा का राग अलापने वालों की कथनी और करनी में अंतर को सामने लाने काफी है। स्वयं वेटरनरी चिकित्सकों के संगठनों द्वारा शासन के संज्ञान में मुद्दा लाए जाने के बावजूद जहाँ तत्कालीन पशुपालन एवं डेयरी विभाग के अपर मुख्य सचिव (एसीएस) जे एन कंसोटिया ने जांच का आश्वासन तो दिया लेकिन दवाओं पर तत्काल प्रभाव से रोक नहीं लगा पाए वहीं विभाग के संचालक डॉ. आर के मेहिया ने कंपनी से जवाब तलब करने के बजाए कंपनी की लापरवाही को लिपिकीय त्रुटि बताते हुए स्वयं ही विवादित कंपनी को क्लीन चिट दे दी। हालांकि कई माननीयों की पार्टनरशिप वाली कंपनी को क्लीन चिट देने के चक्कर में अधिकारी भूल ही गए कि दवाईयों के नाम, कंटेंट और मात्रा के विषय में गलत जानकारी और सफाई, औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम 1940 के अनुसार अधिनियम 1940 के अनुसार अपराध की श्रेणी में आती है। पुराने एसीएस जहाँ शिकायतकर्ताओं को आश्वासनों के नाम पर टहलाते रहे वहीं गौसेवकों की मानें तो वर्तमान एसीएस गुलशन बामरा फिलहाल मुद्दे को समझ ही नहीं पा रहे हैं। 
हमें मानदेय देने में समस्या एम्बुलेंस में करोंड़ो फूंके
प्रदेश भर के प्रशिक्षित गौ सेवकों का आरोप हैं की सरकार उनकी मानदेय की अरसे से लंबित समस्या निराकृत करने के बजाय करोंड़ो फूंक कर एम्बुलेंस सेवा मृत पशुओं को ढ़ोने प्रारम्भ की है, क्योंकि गुणवत्ता विहीन दवाइयां खाकर पहले ही पशुओं की मृत्युदर बढ़ रही हैं। अपनी चार मांगों के निराकरण पर सरकार कोई ठोस निर्णय नहीं लेने पर संघ ने प्रदेश स्तर पर भूख हड़ताल की भी चेतावनी दी थी। मध्यप्रदेश में 1995-96 से प्रत्येक पंचायत स्तर पर मध्यप्रदेश शासन के पशुपालन विभाग ने गौ सेवकों को 6 माह प्रशिक्षण, कुक्कुट पालन ने 1 माह और 3 मासिक कृत्रिम गर्भधान प्रशिक्षण दिलाया था। जिसमें त्रिस्तरीय पंचायत राज अधिनियम के पशुपालन विभाग ने यह लेख लिखा था कि भविष्य में होने वाली पशुपालन विभाग की नियुक्तियों में (तृतीय व चतुर्थ श्रेणी) की पूर्ति प्रशिक्षित गौ सेवकों से ही की जाएगी लेकिन गौ सेवकों को आज तक उपेक्षित और नजर अंदाज किया जाता रहा है और विभाग और मध्यप्रदेश शासन, गौ सेवकों से लगातार सेवा ले रहा है। आज भी सभी गौ सेवक अपने-अपने क्षेत्र में टीकाकरण, वधियाकरण, कृत्रिम गर्भाधान, पशुपालन संगणना और पशु इलाज जैसे महत्वपूर्ण कार्य नि:शुल्क करते आ रहे हैं।
दो वर्ष पूर्व प्रकाश में आया था मामला
दो वर्ष पूर्व मामला सुर्खियों में आया लेकिन जितनी तेजी से मामला सुर्खियों में आया उतनी ही तेजी से मामले में लीपापोती कर दी गई। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार प्रदेश में शासन के माध्यम बकायदा टैंडर के जरिए ऐसे दवा निर्माताओं की दवा ले रहा है जो न तो दवाईयों की स्पेलिंग जानते हैं न हीं कंटेंट की मात्रा। प्रदेश के वेटरनरी चिकित्सकों की मानें तो इसके चलते गौशालाओं के साथ ग्रामीण क्षेत्रों के पशु उपचार मिलने के बावजूद गुणवत्ता विहीन दवाओं की वजह से बेमौत मारे जा रहे हैं लेकिन गौवंशीय पशु मृत्यु दर के बढ़ते आंकड़ों की लगातार गणना न हो पाने के चलते पशुओं की बढ़ती मृत्युदर के आंकड़े किसी के सामने नहीं आ पा रहे हैं। सूत्रों के अनुसार इस मामले में सबसे हैरानी वाली बात यह है कि जिन कंपनियों की गुणवत्ता विहीन दवाईयां गौवंशीय पशुओं को सरकारी तंत्र मुहैया करा रहा है उनमें से अधिकांश कंपनियां माननीयों की है या फिर माननीयों के प्रश्रय से चल रही हैं। इस मामले में सबसे बड़ी हैरानी की बात यह रही कि मामला प्रकाश में आने बाद उक्त त्रुटि को महज लिपिकीय त्रुटि बताते हुए लीपापोती कर दी गई।  
100 एमएल सस्पेंशन, 200 एमएल कंटेंट
इन दवाओं में क्या गड़बडिय़ां हैं इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि गनेश बाग, एबी रोड, ग्वालियर की साईशील (Sci Sheel) कैमिकल इंडस्ट्रीज नामक कंपनी द्वारा निर्मित पशुओं में दस्त रोकने के लिए सस्पेंशन केओलिन (Kaolin) सप्लाई किया जाता है जिसमें प्रति 100 एमएल में की बॉटल में जो कंटेंट बताया जा रहा है उसके हिसाब से प्रत्येक 100 एमएल की प्रत्येक बॉटल में कंटेंट में 200 ग्राम केओलिन (Kaolin), मैग्निशियम कार्बोनेट (Magnisium Carbonate) की मात्रा 50 ग्राम और सोडियम बायकार्बोनेट (Sodium Bi Carbonate) की मात्रा 50 ग्राम सोडियम बाईकार्बोनेट सस्पेंशन बेस क्यू.एस. बताया गया था। हैरानी की बात यह है कि 100 एमएल सस्पेंशन में करीब 300 ग्राम तत्वों का मिश्रण संभव ही नहीं। जानकारों का कहना है कि यह स्थिति सिर्फ एक दवाई में नहीं थी। इसका मतलब यह हुआ कि प्रति 100 एमएल में 300 ग्राम कंटेंट है तो 500 एमएल की बोटल में 1500 ग्राम अर्थात 1.5 किलोग्राम पाउडर होगा, जो कि संभव ही नहीं है।
कंटेट की स्पेलिंग नहीं जानती कंपनियां 
हैरानी की बात यह है कि जिन दवा निर्माता कंपनियों को सरकारी टैंडर के जरिए दवा आपूर्ति का जिम्मा सौंपा गया है उनमें से अधिकांश दवाओं में उपयोग में आने वाले तत्वों (कंटेंट) की स्पेलिंग तक नहीं जानतीं। ग्वालियर की साईशील (Sci Sheel) कैमिकल इंडस्ट्रीज की पशुओं में कृमिनाशक के रूप में उपयोग की जाने वाली दवाई बनाती है। इसमें कंटेंट के रूप मे थाईबेंडाजोल (Thibendazole)13.3 डब्ल्यु/वी, रिफोक्सनिमाइड (Rifoxaniumide) 2.27 प्रतिशत लिक्विड बेस क्यूएस दवा के रैपर में बताया गया है। प्रदेश के वेटरनरी चिकित्सकों की मानें तो हकीकत यह है कि रिफोक्सनिमाइड (Rifoxaniumide) नामक कंपाउंड होता ही नही है उसकी जगह सही स्पेलिंग लिखी जानी थी जो कि  रिफॉक्सेनाइड (Rifoxanide) है। इसी कंपनी के द्वारा स्ट्रीसेफ (Sterisafe) नामक सेनेटाइजर सप्लाई किया जा रहा है। जिसमें कंटेंट के रूप मे क्रॉक्सीलीनॉक (Chroxylenoc) दवा के रैपर में बताया जा रहा है परन्तु इसके स्थान पर (Chloroxylenol) होना चाहिए। आपको जानकर हैरानी होगी की मामला संज्ञान में आने के बाद उक्त कंपनियों पर कार्यवाई के बजाय विभाग के अधिकारीयों ने ही स्वयं इसे लिपिकीय त्रुटि बता न सिर्फ कम्पनी को क्लीनचिट देदी बल्कि विगत दो वर्षो से उक्त कंपनियों के उत्पादों की लापरवाहियों पर लीपापोती कर कथित लिपिकीय त्रुटि सुधार कर लगातार उक्त कंपनियों को दवा सप्लाई के टेंडर भी दिए जा रहे हैं।
एंटीबायोटिक में गलत कंटेंट
एमपी गर्वमेंट सप्लाई नॉट फॉर सेल का टाइटल लिए पशु चिकित्सकों के जरिए पशुपालकों के पशुओं तक पहुंच रही कई दवाईयों में से एक एंटीबायोटिक भी सवालों के घेरे में हैं। इस एंटीबायोटिक में कंटेंट एमॉक्सीसिलिन (Amoxycillin) और जेंटामाईसिन (Gentamicin) हैं जानकारों के अनुसार यह गलत है। जानकारों का कहना है कि एमॉक्सीसिलिन (Amoxycillin) पावडर फार्म में आती है जबकि जेंटामाइसिन (Gentamicin) तरल फार्म में आती है ये दोनों दवाएं एक साथ नहीं दी जा सकती। 
क्या कर रहे हैं जिम्मेदार
इस गंभीर विषय में विचारणीय बात यह भी है की अगर दवा कंपनी ये सब गलतियां कर रही है तो विभागीय औषधीय क्रय समिति और कंट्रोलर ड्रग क्या कार्य कर रहे हैं। जो दवा निर्माता दवाओं के नाम और कंटेंट की स्पेलिंग नहीं जानते ऐसे दवा निर्माताओं के उत्पादों को किस आधार पर इन जिम्मेदारों द्वारा प्रदेश भर में आपूर्ति के लिए हरी झंडी दी गई। 
संदिग्ध प्रतीत होती है गुणवत्ता
विभागीय सूत्रों के अनुसार विचार करने योग्य बात ये है कि जो कंपनियां दवाइयों के कंटेंट का नाम भी सही से नही लिख सकती, दवाओं में किस तत्व को कितनी मात्रा में मिलाया जाना है इसका विवरण अपनी दवाईयों के रैपर तक में नहीं दे पातीं, वे इन महत्वपूर्ण दवाईयों की गुणवत्ता का कैसे खयाल रखती होंगी। जानकारों का कहना है कि समूचे मध्यप्रदेश में पशु पालन विभाग को इन कंपनियों द्वारा जो दवाईयां सप्लाई की जा रही है उनकी गुणवत्ता संदिग्ध प्रतीत होती है क्योंकि दवाई के लेवल पर दवाई के कंटेंट का एवम् मात्रा भी सही दर्ज नही है।
मेक इन इंडिया में भी निकाला आपदा में अवसर
जिस तरह कोरोना काल में प्रदेश भर के कई अस्पतालों ने आपदा को अवसर में बदला ठीक उसी तर्ज पर प्रधानमंत्री की महत्वाकांक्षी मेक इन इंडिया योजना को ऐसी दवा निर्माता कंपनियां पलीता लगा रही हैं। बताते हैं कि ये दवाईयां पीएम की मेक इन इंडिया के अंतर्गत बनाई जा रही है अगर कंपनिया ऐसी गलतियां करती है तो पीएम की महत्वाकांक्षी मुहिम को बहुत बड़ा झटका है।
गौ सेवको एवं पशु चिकित्सकों  के साथ किसान, पशु पालक परेशान
समूचे प्रदेश के गौ सेवको एवं पशु चिकित्सकों के साथ ही किसान और पशु पालक एक अरसे से काफी परेशान हैं इसकी वजह छोटी मोटी बीमारियों से लगातार हो रही पशुओं की मौत है। सूत्रों के अनुसार पहले ऐसा नहीं होता था कि छोटी बीमारियों से पशुओं की मौत हो जाए, उपचार के बाद पशु स्वस्थ्य हो जाते थे लेकिन अब ऐसा नहीं है। स्वयं विटरनरी चिकित्सक इस बात को स्वीकार करते हुए कहते हैं कि जिन दवाइयों को वे जीवन रक्षक समझकर पशुओं के लिए लिखते हैं, बाद में पता चलता है कि दवा की वजह से ही पशुओं की जान चली गई। 
आईवीएफ ने की थी कार्रवाई की मांग
खराब गुणवत्ता की औषधियों के प्रदाय की जा रही हैं। चिकित्सकों की शिकायत पर हमने इस विषय में पशुपालन मंत्री का ध्यानाकर्षण अपर मुख्य सचिव के माध्यम से कराया। हमने बताया कि पशुपालन विभाग की कुछ कंपनियों द्वारा खराब गुणवत्ता की दवाईयां सप्लाई की जा रही। दवाई के लेबल पर दवाई के कंटेंट एवं मात्रा सहीं दर्ज नहीं है, यही नहीं दवाई के नाम भी सही अंकित नहीं किए गए। शासन से इस विषय में कार्रवाई की मांग की गई है। हमारे विभाग के तत्कालीन एसीएस श्री कंसोटिया ने जाँच और कार्यवाही के लिए आश्वस्त किया था ।
डॉ. बबीता त्रिपाठी
प्रदेश अध्यक्ष, आईवीए, लेडी विंग एवं 
प्रोग्रेसिव वेटरनरी डाक्टर वैलफेयर एसोसिएशन
(इस सम्बन्ध में एसीएस वेटरनरी गुलशन बामरा से संपर्क का प्रयास किया गया लेकिन उनसे संपर्क नहीं हो पाया।

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