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ये सर्वे, फर्वे छोड़ो, सीधा लॉटरी सिस्टम एडॉप्ट करो.....

ये तमाम राजनीतिक दल बेवजह में अपना और चुनाव की टिकट चाहने वालों का समय और पैसा बर्बाद करते हैं बाहर से सर्वे करने बड़े बड़े नेता आते हैं प्रत्याशियों से एप्लीकेशन मंगाई जाती है उसमें उन गरीबों का पैसा खर्च होता है फिर जो सर्वे करने वाले आते हैं उनके आने-जाने, रहने, खाने पीने सब में पैसा बर्बाद होता है फिर जब टिकट घोषित होती है तो धक्का मुक्की, गाली गलौज, कपड़े फाड़ने जैसी स्थितियां बन जाती है। अब देखो ना पूरे प्रदेश में टिकट के लिए हाहाकार मचा है कोई विद्रोही कपड़े उतार कर प्रदर्शन कर रहा है, तो कोई शीर्षासन कर नेताओं को चेतावनी दे रहा है कि अगर टिकट नहीं दी तो ऐसा शीर्षासन वो पार्टी को करवा देगा, तो कोई अपने ऊपर पेट्रोल डालकर आग लगाने तैयार है। 
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झगड़ा टिकट का है, पार्टियों का है और हलाकान पुलिस हो रही है , अपने जबलपुर में ही देख लो कितने बड़े बड़े नेता ,केंद्रीय मंत्री जिन पर पूरा दारोमदार था उनकी कैसी हालत कर दी अपने शहर के विद्रोहियों ने , गनमेन की पिटाई हो गई, नेताजी के साथ धक्का मुक्की कर दी गई, जिंदाबाद, मुर्दाबाद के नारे लग गए ,जो कुछ भी कभी बीजेपी में देखा नहीं था वो सब कुछ हो गया। यही हाल कांग्रेस में है दरअसल सारा झगड़ा टिकट रूपी महबूबा का है जिसे हर कोई अपने गले लगाना चाहता अब महबूबा एक है और आशिक सैकड़ों और फिर महबूबा खुद भी जाकर किसी गले नहीं लग सकती उसे किसके गले का हार बनाया जाएगा ये भी ऊपर बैठे नेता तय करते हैं, यानी ना आशिक की इच्छा का कोई अर्थ है और ना महबूबा की, ऐसे में तो झगड़ा होगा ही। टिकट के लिए ऐसी मारामारी पहले भी होती थी पर अब तो अपने शीर्ष पर पहुंच चुकी है।
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 अनुशासन का डंडा चलाने वाली बीजेपी का डंडा न जाने कहां खो गया है, कांग्रेस को इन सब चीजों से बहुत ज्यादा फर्क पड़ता नहीं क्योंकि वहां ये सब चलता रहता है लेकिन बीजेपी। अपनी तो तमाम पॉलिटिकल पार्टियों को एक राय है कि अगर इन सब चीजों से मुक्ति पाना चाहते हो तो यह सर्वे फरवे का लफड़ा छोड़ दो ,ना कोई सर्वे करवाओ ना ये देखो की कौन जीता है कौन हारा हुआ है, कौन महिला है, कौन पुरुष है तमाम लोगों की एप्लीकेशन बुला लो और उनको भी बुला लो जिन्होंने आवेदन दिया है सामने एक बड़े ड्रम में सबके नाम की पर्ची डाल दो और उन उम्मीदवारों में से किसी एक से कह दो कि भैया एक पर्ची निकाल दो जिसकी पर्ची निकलेगी वो टिकट का हकदार होगा, यानी अब आप हमें दोष नहीं दे सकते ,दोष दोगे तो अपने मुकद्दर को, झंझट खत्म, ना कोई झगड़ा ना कोई लफड़ा, जो मुकद्दर का सिकंदर होगा उसके नाम की टिकिट खुल जाएगी ,कम से कम ये सब तो नहीं देखना पड़ेगा जो आज देखना पड़ रहा है बड़े नेताओं को, और फिर जिसकी किस्मत में दम होगा वो जीत भी जाएगा। ऐसे कई नेता अपन ने देखे हैं जो दासियों साल से अपने मुकद्दर के भरोसे चुनाव जीतते आ रहे हैं। अब पार्टियां अपनी बात मानती है या नहीं मानती ,लेकिन इससे अच्छा कोई दूसरा विकल्प हो नहीं सकता। एक बार ये प्रयोग करके तो देखो आनंद आ जाएगा।
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कोई नहीं सुन रहा उमा जी की
एक जमाने में मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी को भरपूर बहुमत से जिता कर लाने वाली पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती बयान पर बयान देती जा रही है लेकिन कोई सुनने तैयार नहीं है, बेचारी करें तो करें क्या ,अब कोई पूछ तो रही नहीं, पार्टी ने भी किनारे कर दिया है सो बीच-बीच में बयान देकर अपने आप को लाइमलाइट में रखने की कोशिश करती रहती हैं वैसे कहती तो सौ टके की बात जैसे अभी कह दिया उन्होंने कि हमें हमेशा जीतने की लालसा और पराजय के भय से मुक्त होना चाहिएऔर दिखना भी चाहिए हम लोगों ने सिर्फ जीतने की योग्यता को आधार मान लिया है अब उमा जी को कौन समझाए कि हर पॉलीटिकल पार्टी तो सत्ता के लिए ही बनी है और सत्ता जीतने के बाद ही हाथ आती है अब सब कोई आप जैसे तो है नहीं कि मुकदमा हो गया तो मुख्यमंत्री पद गौर साहब के हाथों में देकर कर्नाटक निकल गई लेकिन क्या हुआ ? तमाम कसमों को किनारे रख गौर साहब ने आपकी वापसी पर आपकी गद्दी छोड़ने से साफ इनकार कर दिया, तो ये तो राजनीति है जो एक बार कुर्सी पर बैठ गया फिर वो उससे उतरने की लिए तैयार नहीं होता फेविकोल का जोड़ जिस तरह से लगता है वही उसके और कुर्सी के बीच में लग जाता है फिर राजनीति में तो जो किनारे हुआ तो वो फिर किनारे ही होता जाता है आप लाख बयान देते रहो किसी के कानों मेंजूं नहीं रेंगने वाली। बेहतर है कि आप अपना ध्यान पूजा पाठ में लगाओ उसी में फायदा है क्योंकि राजनीति के नक्कारखाने में आपकी आवाज तूती की मानिंद है।

वादोंऔर घोषणाओं का मौसम
मध्य प्रदेश में अगले महीने होने वाले विधानसभा चुनाव के पहले दोनों प्रमुख राजनीतिक पार्टियों ने जिस तरह से वादों और घोषणाओं की झड़ी लगाई है वो अपने आप में अद्भुत है, कौन कितनी घोषणा कर सकता है इसका कंपटीशन चल रहा है ,अभी हाल में कांग्रेस में अपने वचन पत्र में 1000 वचन जनता के सामने रख दिए हैं कि यदि हमारी सरकार आई तो हम ये तमाम वचन पूरे कर देंगे, हर पार्टी जानती है कि जनता को भूलने की बीमारी होती है और इसी डिमेंशिया की बीमारी से प्रदेश और देश की जनता पीड़ित है, कौन से वादे पार्टी ने किए हैं कौन से पूरे हुए ये जनता दो ढाई महीने के भीतर भुला देती है और जनता तो छोड़ो जिन्होने वादे किए हैं वे भी भूल जाते हैं कि उन्होंने कौन-कौन से वादे किए थे क्योंकि वे भी जानते हैं कि जो भी वादे वे कर रहे हैं उनको पूरा करना मुश्किल ही नहीं बल्कि डॉन की तर्ज पर नामुमकिन है फिर भी जब चुनाव जीतना है तो वादे तो करने पड़ेंगे जनता का क्या है उसे तो वादों की चासनी में डूबो दो वो उसी में खुश होती रहेगी, बाद में वादे सिर्फ वादे रह जाएंगे और फिल्म दुश्मन का यह गाना पूरी तरह से जनता पर फिट बैठ जाएगा वादा तेरा वादा, वादे पे तेरे मारा गया बंदा मैं सीधा-साधा ,वादा तेरा वादा। 

सुपर हिट ऑफ़ द वीक
मेरी बीवी बहुत ज्यादा मोबाइल चलाती है मैं क्या करूं श्रीमान जी के एक दोस्त ने उनसे पूछा
अगर तुम्हारी बीवी बहुत ज्यादा मोबाइल चलाती है तो उसे ना डांटे ना फटकारें केवल उसका मोबाइल फेंक दे, याद रहे हमें बीमारी से लड़ना है बीमार से नहीं श्रीमान जी का उत्तर था। 

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