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गरीबी में गुजरा दिल्ली के मंत्री राजकुमार आनंद का जीवन
नई दिल्ली । दिल्ली शराब घोटाले की आंच जहां मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के दरवाजे तक जा पहुंची है, तो ईडी के सामने उनके नेताओं की भी फाइलें खुल रही हैं। एक तरफ सीएम केजरीवाल को एजेंसी ने पेश होने के लिए समन भेजा है तो इस बीच आज सुबह सवेरे ही ईडी की एक टीम उनके एक मंत्री राजकुमार आनंद के घर भी पहुंच गई। राजकुमार आनंद, एक सम्मानित मंत्री हैं। उन्होंने अपने पूरे जीवन में कई चुनौतियों का सामना किया है। राजकुमार आनंद के पास दिल्ली सरकार में कई विभाग हैं। उनके पास समाज कल्याण, श्रम, रोजगार, अनुसूचित जाति/जनजाति कल्याण, भूमि एवं भवन, सहकारिता एवं गुरुद्वारा चुनाव विभागों की जिम्मेदारी है। भले ही राजकुमार आनंद दिल्ली सरकार में भारी-भरकम मंत्रालय संभाल रहे हों लेकिन उनका जीवन काफी चुनौतियों में गुजरा है।
गरीबी में जन्मे राजकुमार आनंद के माता-पिता ने उन्हें अलीगढ़ में अपने नाना-नानी के साथ रहने के लिए भेज दिया था। उनके नाना कबाड़ी का काम करते थे। वित्तीय संकट की वजह से उनकी पढ़ाई भी प्रभावित हुई। राजकुमार आनंद ने अपने बाल्यकाल में अलीगढ़ में रहते हुए ताला बनाने वाली फैक्ट्री में भी काम किया। इन बाधाओं के बावजूद आप नेता राजकुमार आनंद डटे रहे और ट्यूशन पढ़ाकर कमाए पैसों से अपनी फीस भरी। उन्होंने एमए की डिग्री हासिल की। बेकार पड़े फोम से तकिए बनाने से लेकर रेक्सिन लेदर उद्योग में एक सफल व्यवसायी बनने तक की उनकी यात्रा भले ही सीधी-सादी लगे, लेकिन उनका जीवन संघर्ष और मुश्किलों से भरा रहा। वह अपने सामाजिक कार्यों के लिए जाने जाते हैं।
उन्होंने समान विचारधारा वाले सहयोगियों के साथ ‘आनंदपथ पथ फाउंडेशन’ की सह-स्थापना की, जिसका लक्ष्य वंचितों का उत्थान करना था। फाउंडेशन ने ‘डॉक्टर’ नामक ट्यूशन सेंटर स्थापित किए। स्लम क्षेत्रों में शैक्षिक अवसर प्रदान करने के लिए अंबेडकर पाठशाला भी बनाया है। देश में जब भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना आंदोलन हुआ तो उस वक्त ही राजकुमार आनंद अरविंद केजरीवाल के नजदीक आए। आंदोलन में उनकी सक्रीय भूमिका रही। इसके बाद आम आदमी पार्टी के बनने के बाद वह पार्टी से जुड़ गए। 2020 में पहली बार पटेल नगर विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुने गए। एक साल पहले नवंबर 2022 में ही उन्हें मंत्री बनाया गया था। राजकुमार आनंद अभी जो विभाग संभाल रहे हैं, वो पहले राजेंद्र पाल गौतम के पास थे। लेकिन विवादों में घिरे राजेंद्र पाल को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था।
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