लखनऊ । यदि बीजेपी को अपने मिशन- 80 को पूरा करना है तो मायावती विपक्षी गठबंधन इंडिया से दूर रहेंगी तब यह होगा। जानकार बताते हैं कि यदि मायावती अलग रहती हैं तो जहां-जहां सपा अपने उम्मीदवार उतारेगी वहां-वहां त्रिकोणीय मुकाबला होगा। इससे बीजेपी को बड़ा फायदा मिलेगा, और राह आसान होगी। यही वजह है कि बीजेपी के खिलाफ बन रहे इंडिया गठबंधन में यदि मायावती शामिल नहीं होती हैं तो फिर पार्टी का ये दावा लगभग हकीकत बनता दिख रहा है। पिछले लोकसभा चुनाव के आंकड़े भी इसकी गवाही दे रहे हैं।
2024 का लोकसभा चुनाव अकेले लड़ने के मायावती के एलान से लोकसभा की ज्यादातर सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबला होगा। सपा और बसपा के वोट बंटने के कारण बीजेपी की राह आसान होती जायेगी। यहां गौरतलब है कि 2014 में इसी गणित ने बीजेपी को 73 सीटों पर विजय दिलाई थी। इसमें दो सीटें उसकी सहयोगी अपना दल (एस) की थीं। इस दावे की सच्चाई देखने के लिए साल 2014 के लोकसभा चुनाव के आंकड़े देखने होंगे जिसमें बीजेपी को सिर्फ 7 सीटों पर हार मिली थी लेकिन, 2019 में सपा और बसपा के साथ लड़ने से बीजेपी 16 सीटों पर हार गयी। अब उसके लिए बड़ी चुनौती हारी हुई इन सीटों पर इस बार पताका फहराना है।
बीजेपी के पक्षकार बताते हैं कि बसपा के अलग लड़ने से उसकी ये राह आसान हो रही है। आजमगढ़ और रामपुर पार्टी उपचुनाव में जीत ही चुकी है। नजीर के तौर पर पिछले साल आजमगढ़ में हुए उपचुनाव के नतीजों को ही देख लें। आजमगढ़ में बीजेपी के दिनेश लाल यादव निरहुआ को 3 लाख 12 हजार 768 वोट मिले थे। सपा के धर्मेंद्र यादव को 3 लाख 4 हजार 89 वोट मिले लेकिन, बसपा के गुड्डू जमाली को मिले 2 लाख 60 हजार वोटों ने बीजेपी को जीता दिया। निरहुआ साढ़े 8 हजार वोटों से जीत गये। दूसरी नजीर गाजीपुर सीट है। 2014 में बीजेपी के मनोज सिन्हा ने इसे 32 हजार वोटों से जीता था। तब बसपा को 2 लाख 41 हजार और सपा को 2 लाख 74 हजार वोट मिले थे। यानी त्रिकोणीय मुकाबले में बीजेपी को फायदा मिला।
इसी तरह पश्चिमी यूपी की एक सीट बिजनौर भी अच्छा उदाहरण है। 2014 में सपा और बसपा अलग-अलग थीं तो बीजेपी के कुंवर भतेन्द्र सिंह ने ये सीट 2 लाख से ज्यादा मार्जिन से जीता था। तब उन्हें 4 लाख 86 हजार, सपा के शाहनवाज राणा को 2 लाख 81 हजार और बसपा के मलूक नागर को 2 लाख 30 हजार वोट मिले थे। 2019 में कुंवर भतेन्द्र सिंह 70 हजार वोटों से बसपा के मलूक नागर से हार गये। ये हाल तब रहा जब उन्हें 2019 में 2014 से ज्यादा वोट मिले थे। संभल की सीट भी ऐसी ही है। 2014 में बीजेपी के सत्यपाल सिंह ने 5 हजार वोटों से जीत दर्ज की थी लेकिन, 2019 में सपा-बसपा के साथ लड़ने से बीजेपी को यहां पौने दो लाख वोटों से शिकस्त मिली।