नई दिल्ली। राष्ट्रीय राजधानी में केंद्र व दिल्ली सरकार के अस्पतालों में आने वाले मरीजों के लिए सुविधाएं बढ़ाने से जुड़े मामले पर दिल्ली हाई कोर्ट ने महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए निर्देश दिए हैं। अदालत ने कहा कि आपातकालीन वार्ड में आने वाली भीड़ को रोकने के लिए गंभीर रोगों से जूझ रहे मरीजों के लिए सर्वोतम चिकित्सा सहायता उपलब्ध कराना होगा। अदालत ने कहा कि गंभीर रूप से बीमार मरीजों को बेहतर इलाज देने के लिए आपातकालीन वार्डों में डाक्टरों उपलब्धता के साथ ही पर्याप्त स्थान और चिकित्सा सुविधा बढ़ाने की तत्काल आवश्यकता है।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन व न्यायमूर्ति मिनी पुष्कर्णा की पीठ ने कहा कि आपात स्थिति में गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा देने के लिए आपातकालीन देखभाल प्रणाली की आवश्यकता है। उक्त तथ्यों को देखते हुए केंद्र सरकार को निर्देश दिया जाता है कि वह अपने अस्पतालों के विशेष रूप से आपातकालीन वार्ड के बुनियादी ढांचे में सुधार करे। वहीं, दिल्ली सरकार को भी विशेष रूप से आपातकालीन वार्ड से लेकर अपने अस्पतालों के समग्र चिकित्सा व्यवस्था में सुधार के लिए कदम उठाने का निर्देश दिया जाता है। अदालत ने साथ ही केंद्र व दिल्ली सरकार को इस संबंध में 12 सप्ताह में हलफनामा दाखिल करने का निर्देश देते हुए सुनवाई 13 मार्च तक के लिए स्थगित कर दी।
अदालत ने उक्त आदेश अधिवक्ता शशांक देव सुधि के माध्यम से याचिकाकर्ता व पूर्व भाजपा विधायक नंद किशोर गर्ग द्वारा दायर की गई जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया। अदालत ने याचिका पर सुनवाई के दौरान इस पहलू का स्वत: संज्ञान लेकर जनहित याचिका शुरू की थी कि सरकारी अस्पतालों के आपातकालीन वार्ड में मूलभूत बुनियादी ढांचे को अद्यतन व बढ़ाने की जरूरत है। अदालत ने पाया था कि गंभीर हालात में अस्पताल लाए जाने वाले मरीजों के लिए शुरूआती कुछ समय गोल्डन आवर्स होता है, जोकि उसके जीवन-मरन के अंतर करता है। साथ ही मामले में अदालत की सहायता के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ अग्रवाल, विश्वजीत सिंह और रुद्राली पाटिल को न्याय मित्र नियुक्त किया था। इसी मामले को एक अन्य याचिका याचिकाकर्ता मधु बाला ने भी दायर की थी।