भोपाल । पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव को लेकर करीब आधा दर्जन ऐजेंसियों ने अपने एग्जिट पोल के आंकड़े जारी किए हैं। बीते रोज जारी आंकड़ों को लेकर जो भ्रम की स्थिति बनी, वो शुक्रवार को दिनभर चर्चा का विषय बनी रही। आंकड़ों में जिस तरह से परिवर्तन किया गया है वो चौंकाने के साथ साथ ऐजेंसियों पर बने दबाव को भी दर्शाता है। ये पहली बार हुआ है जब जीती गई सीटों के बीच लगभग 20-20 सीटों का अंतर दिखाया गया है। इससे पहले अधिकांशत: पांच से दस सीटों का अंतर दिखाया जाता था। ऐसा भी पहले कभी नहीं हुआ कि एग्जिट पोल ने पहले कांग्रेस की सीटें ज्यादा दिखाईं और बाद में भाजपा की बंपर सीटों के साथ सरकार बनाने का अनुमान दिखा दिया है।
एग्जिट पोल एजेंसियों की ये घबराहट का ही परिणाम है कि कांग्रेस द्वारा ज्यादा सीटें जीतने का आंकड़ा बदलना पड़ा। इस तरह की खबरें सोशल मीडिया पर भी वायरल होने लगीं और कहा जाने लगा कि पहले एग्जिट पोल में कांग्रेस की सीटें ज्यादा आ रही थीं फिर ऐसा क्या हुआ कि अचानक मध्य प्रदेश में भाजपा को बंपर सीटें मिलती दिखने लगीं। चर्चा इस बात पर भी है कि राज्य और केंद्र सरकार के दबाव में सर्वे एजेंसियों को अपना आंकड़ा एक बार नहीं बल्कि दो दो बार बदलना पड़ा। एग्जिट पोल पूरी तरह झूठे साबित न हों, इसके लिए बीस-बीस सीटों का अंतराल दर्शाया गया। ताकि कहीं न कहीं आंकड़े अनुमान के आसपास नजर आ जाएं।
एग्जिट पोल कुछ भी दिखा रहे हों,लेकिन प्रदेश का आम मतदाता इस तरह के आकलन पर भरोसा करता नजर नहीं आ रहा है। इसकी वजह ये है कि म.प्र. में बीते दो दशकों से भाजपा की सरकार है और एंटीइनकंबेसी के अलावा कई तरह के मुद्दों को लेकर जनता में नाराजगी बढ़ी है। घोषणाएं और झूठे वादों से लोग परेशान थे,जिसके कारण मतदाता परिवर्तन का मूड बना चुका था। राज्य के किसी भी जिले या विधानसभा क्षेत्र का फीडबैक लिया जाए तो कांग्रेस के समर्थन में ज्यादा लोग दिखाई दे रहे हैं। अचानक एग्जिट पोल ने जिस तरह की तस्वीर दिखाई और बार-बार अनुमान बदले हैं, उस पर लोगों को भरोसा नहीं हो रहा है।