विभिन्न स्तरों पर कूटनीतिक वार्ता भी हुई। लेकिन, मालदीव के रुख में तत्काल कोई बदलाव नहीं आया। क्योंकि, मोइज्जू को चीन का करीबी माना जाता था। ऐसे में उनके रुख में आए बदलाव को स्वाभाविक रूप से भारत की कूटनीतिक सफलता माना जा रहा है।
भारत की कूटनीति ने मालदीव के रुख में बदलाव ला दिया है। देखा जाए तो 9 से 11 अगस्त के बीच विदेश मंत्री एस जयशंकर का मालदीव दौरा काफी सार्थक रहा। पिछले साल मोहम्मद मोइज्जू के राष्ट्रपति बनने के साथ ही वहां भारत विरोधी माहौल बन गया था, लेकिन अब एक बार फिर हालात बदल गए हैं। राष्ट्रपति मोइज्जू ने भारत को बेहद करीबी मित्र देश बताया है। यह चीन के लिए झटका है, क्योंकि मोइज्जू को चीन का समर्थक माना जाता है।
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विदेश मामलों के जानकारों का मानना है कि मालदीव के रुख में यह बदलाव यूं ही नहीं आया, बल्कि यह भारतीय कूटनीति की समझदारी है। पिछले साल नवंबर से ही जब मोइज्जू की पार्टी सत्ता में आई, तब से ही उन्होंने अपने चुनावी एजेंडे को लागू करना शुरू कर दिया था और आपदा प्रबंधन के लिए वहां भेजे गए भारतीय सैनिकों की वापसी पर अड़े हुए थे। इसकी शुरुआत तो हुई, लेकिन भारत ने अपनी कूटनीतिक सूझबूझ दिखाते हुए मालदीव के साथ सहयोग जारी रखा।
विभिन्न स्तरों पर कूटनीतिक वार्ताएं भी हुईं। लेकिन, मालदीव के रुख में तत्काल कोई बदलाव नहीं आया। क्योंकि, मोइज्जू को चीन का करीबी माना जाता था। ऐसे में उनके रुख में आए बदलाव को स्वाभाविक रूप से भारत की कूटनीतिक सफलता माना जा रहा है। हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि यह देखना होगा कि यह बदलाव स्थायी है या अस्थायी।
मालदीव को उस समय बड़ा झटका लगा, जब मोदी लक्षद्वीप गए और उसके बाद मालदीव आने वाले पर्यटकों की संख्या में गिरावट आने लगी। मालदीव के पर्यटन मंत्रालय के मुताबिक, जनवरी-मार्च के बीच वहां आने वाले भारतीय पर्यटकों की संख्या में 38 फीसदी की गिरावट आई। इससे मालदीव को भारी आर्थिक नुकसान हुआ। पर्यटन ही उसकी आय का मुख्य स्रोत है। इस बीच, मालदीव की अर्थव्यवस्था भी खराब होने लगी। ऐसे में उसे भारत से मदद की उम्मीद थी।
भारत ने मालदीव में कई विकास परियोजनाओं को मंजूरी दी है। अगर भारत उन्हें वापस लेता है, तो उसे मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है, इसलिए मोइज्जू के पास दोस्ती का हाथ बढ़ाने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अपनी यात्रा के दौरान 28 द्वीपों में क्रेडिट लाइन, पानी और सीवेज लाइन के लिए यूपीआई समेत कई योजनाओं की शुरुआत की। दोनों देशों के बीच कई समझौतों पर भी हस्ताक्षर हुए। इनमें मालदीव के एक हजार शीर्ष अधिकारियों को भारत में प्रशिक्षण देना भी शामिल है।