- पुलिस ने युवक को दो दिन तक जंजीरों में बांधकर थाने में रखा, सांसद ने एसपी को वीडियो कॉल कर दिखाई अमानवीय करतूत

पुलिस ने युवक को दो दिन तक जंजीरों में बांधकर थाने में रखा, सांसद ने एसपी को वीडियो कॉल कर दिखाई अमानवीय करतूत

बालासोर जिले के भोगराई थाने में एक युवक को जंजीरों में बांधकर रखा गया। भोगराई थाने की यह घटना ओडिशा में पुलिस की कार्यप्रणाली और मानवाधिकारों की सुरक्षा पर कई गंभीर सवाल खड़े करती है।

बालासोर: ओडिशा के बालासोर जिले के भोगराई थाने में एक युवक के साथ हुए अमानवीय व्यवहार का मामला अब प्रशासन के उच्च स्तर तक पहुंच गया है। युवक को बिना मामला दर्ज किए दो दिनों तक हाथ-पैरों में जंजीर बांधकर थाने में रखने के आरोप में भोगराई थाना प्रभारी श्रीवल्लभ साहू को निलंबित कर दिया गया है।

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युवक को हाथ-पैरों में लोहे की जंजीर बांधकर दो दिनों तक थाने में रखा गया


दरअसल, जयरामपुर गांव निवासी कार्तिक चंद्र भोल को मोटरसाइकिल के लेन-देन से जुड़े मामूली विवाद में भोगराई थाने में बुलाया गया था। लेकिन पुलिस ने न तो उसके खिलाफ मामला दर्ज किया और न ही कानूनी प्रक्रिया का पालन किया। इसके बजाय, युवक को हाथ-पैरों में लोहे की जंजीर बांधकर दो दिनों तक थाने में रखा गया और उसे शारीरिक रूप से प्रताड़ित भी किया गया।

भाजपा सांसद ने एसपी को वीडियो कॉल कर अमानवीय कृत्य दिखाया


कार्तिक की पत्नी ने जब दो दिन तक उसे नहीं देखा तो उसने स्थानीय भाजपा नेता आशीष पात्रा से संपर्क किया। गुरुवार को जब बालासोर के सांसद प्रताप सारंगी भोगराई पहुंचे तो आशीष पात्रा ने उन्हें घटना की जानकारी दी। सांसद ने तुरंत थाने जाकर युवक की हालत देखी और बालासोर एसपी राज प्रसाद को वीडियो कॉल के जरिए पूरी स्थिति दिखाई।


भोगराई थाना प्रभारी श्रीवल्लभ साहू निलंबित

घटना की जांच के बाद बालासोर एसपी ने अपनी रिपोर्ट डीजीपी वाई.बी खुरानिया को भेजी। रिपोर्ट में पुष्टि हुई कि युवक को वास्तव में शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया गया था। आईआईसी श्रीवल्लभ साहू का यह तर्क कि "स्टाफ की कमी के कारण युवक को बांधना पड़ा" डीजीपी ने पूरी तरह अस्वीकार्य माना और ड्यूटी में लापरवाही के लिए साहू को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया।

भाजपा सांसद ने की घटना की निंदा

सांसद प्रताप सारंगी ने घटना की कड़ी निंदा करते हुए कहा, "भोगराई थाने में यह असभ्य प्रथा चल रही है। छोटे-छोटे मामलों में निर्दोष लोगों को प्रताड़ित किया जा रहा है, जबकि गंभीर अपराधों में आरोपी खुलेआम घूम रहे हैं। इस मामले में न तो केस दर्ज हुआ और न ही जांच हुई, फिर भी युवक को सजा दे दी गई। यह पूरी तरह से अवैध है।"

आईआईसी साहू का निलंबन इस बात का संकेत है कि प्रशासन अब ऐसी घटनाओं पर आंखें मूंदने के बजाय कार्रवाई करने के मूड में है। अब देखना यह है कि पीड़ित को न्याय दिलाने और ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए आगे क्या कदम उठाए जाते हैं।

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