भाजपा ने कहा कि उमर अब्दुल्ला द्वारा कश्मीर में हुए विद्रोह की तुलना जलियाँवाला बाग से करना शहीदों का अपमान है। तरुण चुघ ने उमर के बयान को हिंसा पर पर्दा डालने का प्रयास बताया। सुनील शर्मा ने 13 जुलाई 1931 की घटना को एक हिंसक सांप्रदायिक हमला बताया जिसमें हिंदुओं और सिखों के घरों पर हमला किया गया था।
प्रदेश भारतीय जनता पार्टी ने कहा है कि मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को कश्मीर में विद्रोहियों को शहीद बताकर जनता को गुमराह करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए।
मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला द्वारा कश्मीर में महाराजा के खिलाफ हुए विद्रोह की तुलना जलियाँवाला बाग से करने पर पलटवार करते हुए भाजपा ने कहा है कि यह बयान देश की आजादी के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले शहीदों का अपमान है। भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव और जम्मू-कश्मीर प्रभारी तरुण चुघ ने कहा है कि उमर अब्दुल्ला का बयान इस्लामी हिंसा पर पर्दा डालने का प्रयास है।
उन्होंने याद दिलाया कि वर्ष 1990 में, 12 जनवरी से 16 जनवरी के बीच, लाउडस्पीकर पर धमकियाँ देकर डेढ़ लाख कश्मीरी पंडितों को कश्मीर से बाहर निकाल दिया गया था, उस समय उमर अब्दुल्ला चुप रहे थे। उन्होंने कहा कि उमर अब्दुल्ला दंगाइयों को शहीद बताकर इतिहास दोहराने की कोशिश कर रहे हैं।
चुघ ने कहा कि 1919 का जलियाँवाला बाग हत्याकांड भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के सबसे काले और खूनी अध्यायों में से एक है। उस दुर्भाग्यपूर्ण दिन, जनरल डायर के नेतृत्व में ब्रिटिश सैनिकों ने सैकड़ों निर्दोष और निहत्थे भारतीयों को केवल इसलिए गोलियों से भून दिया क्योंकि वे अन्यायपूर्ण कानूनों के खिलाफ शांतिपूर्ण तरीके से विरोध कर रहे थे। वे शांतिप्रिय नागरिक थे जो विदेशी शासन से स्वतंत्रता और सम्मान की माँग कर रहे थे। भारतीयों के रूप में, उन्हें याद रखना हमारा सामूहिक, नैतिक और राष्ट्रीय कर्तव्य है।
वहीं, जम्मू-कश्मीर विधानसभा में विपक्ष के नेता और भाजपा महासचिव सुनील शर्मा ने सीएम उमर पर निशाना साधते हुए कहा है कि जलियांवाला बाग में बलिदान हुआ था, जबकि 13 जुलाई 1931 को एक साजिश रची गई थी। उमर का बयान त्रुटिपूर्ण, भ्रामक और ऐतिहासिक रूप से गलत है। सुनील शर्मा ने रविवार को यहां जारी एक बयान में कहा कि 13 जुलाई को श्रीनगर में जो हुआ वह शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन नहीं, बल्कि एक हिंसक सांप्रदायिक हमला था।
यह एक ब्रिटिश अधिकारी के घरेलू नौकर अब्दुल कादिर के भड़काऊ भाषणों के बाद शुरू हुआ। परिणामस्वरूप, पुलिस की गोलीबारी में 13 लोग मारे गए। इसके बाद बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक हमले हुए। श्रीनगर, राजौरी, मीरपुर और मुजफ्फराबाद जैसे इलाकों में हिंदुओं और सिखों के घरों, व्यवसायों, मंदिरों और गुरुद्वारों पर हमला किया गया और लूटपाट की गई।
यह सांप्रदायिक हिंसा का एक काला अध्याय था। सुनील शर्मा ने कहा कि वह मुख्यमंत्री द्वारा जानबूझकर तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश करने की कड़ी निंदा करते हैं। वर्ष 1931 की घटनाएँ अराजकता, दंगों और निर्दोष नागरिकों को निशाना बनाने से भरी थीं। जलियाँवाला बाग के शांतिपूर्ण पीड़ित उत्पीड़न के विरुद्ध खड़े हुए।
उन्होंने स्पष्ट किया कि जलियाँवाला बाग के पीड़ित राष्ट्रीय नायक थे जिन्होंने विदेशी अत्याचार के विरुद्ध लड़ाई लड़ी। 1931 के हिंसक दंगाइयों को निहित स्वार्थी तत्वों द्वारा सांप्रदायिक सद्भाव को अस्थिर करने और स्थानीय डोगरा शासन को कमज़ोर करने के लिए मोहरे के रूप में इस्तेमाल किया गया था।भाजपा नेता ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 के निरस्त होने से सच्चाई और पारदर्शिता का एक नया युग शुरू हुआ है। ऐसे में राज्य की जनता को मुख्यमंत्री और नेशनल कॉन्फ्रेंस द्वारा उन्हें गुमराह करने के लिए की जा रही राजनीति को विफल करना चाहिए।