भाजपा और उससे जुड़े संगठनों का मानना है कि मुगल काल भारत का "गुलामी काल" था और उसका महिमामंडन करना गलत है।
नई पीढ़ी को यह पढ़ाया जा रहा है कि भारत का "स्वर्ण युग" मुगलों के समय नहीं, बल्कि मुगलों से पहले और अंग्रेजों के जाने के बाद था।
भारत में इतिहास, खासकर मुगलों के इतिहास को लेकर लंबे समय से राजनीति होती रही है। आठवीं कक्षा की नई
एनसीईआरटी पाठ्यपुस्तक में मुगलों के विवरण में किए गए बदलाव ने एक बार फिर इस बहस को तेज कर दिया है।
आपको बता दें कि नए पाठ्यक्रम में बाबर को "क्रूर आक्रमणकारी", अकबर को "क्रूरता और सहिष्णुता के मिश्रण वाला शासक" और औरंगज़ेब को "सैन्य शासक" बताया गया है।
आपको बता दें कि भारत में इतिहास लेखन कभी भी केवल एक अकादमिक विषय नहीं रहा। यह हमेशा से राजनीति और विचारधारा का हिस्सा रहा है।
लंबे समय तक वामपंथी और उदारवादी इतिहासकारों के प्रभाव में मुगलों को "सांस्कृतिक समन्वयक" और "गंगा-जमुनी तहजीब" के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया जाता रहा। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में,
जैसे-जैसे भारतीय जनता पार्टी और उससे जुड़ी विचारधारा ने शिक्षा प्रणाली में प्रभाव प्राप्त किया है, इतिहास को "सही" करने और "राष्ट्रीय गौरव" के अनुरूप इसे फिर से लिखने का अभियान तेज हो गया है।