नई दिल्ली । देश के नए सूचना आयुक्त हीरालाल सामरिया की नियुक्ति पर बवाल मच गया है। हालांकि वह दलित समुदाय से आने वाले पहले व्यक्ति हैं, जिन्हें यह अहम पद मिला है। लेकिन उनकी नियुक्ति को लेकर विवाद शुरू हो गया है। सूचना आयुक्त की नियुक्ति करने वाली समिति के सदस्य अधीर रंजन चौधरी ने सरकार पर नियमों को ताक पर रखकर उनकी नियुक्ति करने का आरोप लगाया है। इस मामले में उन्होंने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को एक पत्र भी लिखा है। पत्र में उन्होंने लिखा है कि उन्हें इस नियुक्ति को लेकर पूरी तरह अंधेरे में रखा गया। गौरतलब है कि अधीर रंजन चौधरी पीएम की अध्यक्षता वाली उस समिति का हिस्सा हैं, जो मुख्य सूचना आयुक्त का चयन करती है।
उन्होंने कहा कि इस नियुक्ति के बारे में सरकार ने उन्हें न तो कुछ बताया और न ही किसी तरह की कोई सलाह ली गई।
अधीर रंजन चौधरी ने अपने पत्र में लिखा, कि यह बेहद दुख का विषय है। मैं भारी मन से आपको लिख रहा हूं कि मुख्य सूचना आयुक्त और अन्य सूचना आयुक्तों की नियुक्ति में सभी लोकतांत्रिक प्रावधान, नियम और प्रक्रियाओं को किनारे रख दिया गया। बता दें कि सामरिया ने सोमवार को ही मुख्य सूचना आयुक्त के तौर पर शपथ ली। उन्हें राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने ही शपथ दिलाई थी। इस समारोह में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और पीएम नरेंद्र मोदी भी मौजूद थे। अधीर रंजन से जुड़े लोगों का कहना है कि उन्हें मीटिंग के बारे में बताया गया था। लेकिन फिर वह स्थगित हो गई और तारीख बदली गई।
लेकिन अधीर रंजन चौधरी कोलकाता से वापस लौटे तब तक सूचना आयुक्त की नियुक्ति हो चुकी है। इस बारे में उन्हें बताया भी नहीं गया। सूचना का अधिकार कानून के मुताबिक मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा समिति की सिफारिश पर की जाती है। इस समिति के मुखिया पीएम होते हैं और उसमें सदस्य के तौर पर एक केंद्रीय मंत्री एवं लोकसभा में विपक्ष के नेता को शामिल किया जाता है। अधीर रंजन ने अपने पत्र में दावा किया है कि कार्मिक विभाग ने उनसे अक्टूबर के आखिरी सप्ताह में संपर्क किया था।