भोपाल । मप्र विधानसभा चुनाव में निर्दलीय और बागी उम्मीदवार भाजपा-कांग्रेस का खेल बिगाड़ भी सकते हैं। इनमें अधिकतर नेता वे ही हैं, जिन्होंने भाजपा और कांग्रेस से टिकट न मिलने से नाराज होकर निर्दलीय चुनाव मैदान में उतर गए है। पिछले चुनाव की तुलना में इस बार इनकी संख्या कुछ अधिक है। इनमें कुछ तो पूर्व सांसद और विधायक भी हैं। इनको लेकर दोनों दल सतर्क भी हैं, क्योंकि जातीय और स्थानीय समीकरणों के कारण इनका अपना मजबूत जनाधार भी है। प्रदेश में एक दर्जन सीट ऐसी हैं, जहां निर्दलीय भाजपा और कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती बनकर उभरे हैं।
डा. आंबेडकर नगर महू विधानसभा सीट से अंतर सिंह दरबार निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं। ये कांग्रेस से विधायक रह चुके हैं, पर टिकट न मिलने से नाराज होकर चुनाव मैदान में उतर गए हैं। इसी तरह आलोट से प्रेमचंद गुड्डू, गोटेगांव से शेखर चौधरी, सिवनी मालवा से ओम रघुवंशी, होशंगाबाद से भगवती चौरे, धार से कुलदीप सिंह बुंदेला, मल्हारगढ़ से श्यामलाल जोकचंद, बड़नगर से राजेंद्र सिंह सोलंकी, भोपाल उत्तर से नासिर इस्लाम और आमिर अकील भी निर्दलीय ताल ठोक रहे हैं। कांग्रेस नेताओं ने इन्हें समझाने-मनाने की खूब कोशिश भी की, लेकिन बात नहीं बनी। दरअसल, पार्टी ने गोटेगांव और बड़नगर में पहले जो प्रत्याशी घोषित किए थे,
उन्हें बदल दिया। इससे आहत दोनों सीटों पर कांग्रेस नेता निर्दलीय मैदान में उतर गए। कांग्रेस की तुलना में देखें तो भाजपा की स्थिति बेहतर है। पिछले चुनाव की बात करें तो चार निर्दलीय ही चुनाव जीते थे। इनमें से प्रदीप जायसवाल और विक्रम सिंह राणा इस बार भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। वहीं, सुरेंद्र सिंह शेरा और केदार डाबर कांग्रेस के प्रत्याशी हैं। इसके पहले 2013 में दिनेश राय मुनमुन, सुदेश राय और कल सिंह भाबर निर्दलीय चुनाव जीते थे। तीनों अब भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं।सीधी से केदारनाथ शुक्ल और बुरहानपुर से हर्षवर्धन सिंह चौहान ही ऐसे हैं, जो निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं।