काबुल। चीन अब धीरे-धीरे तालिबान को मान्यता दे रहा है, यही वजह है कि उसने तालिबान से राजनयिक संबन्ध शुरु कर दिए हैं। तालिबान ने यहां अपना राजदूत तैनात कर दिया है। गौरतलब है कि तालिबान पिछले दो वर्षों से अफगानिस्तान की सत्ता में है। लेकिन दुनिया में उसे मान्यता नहीं मिल पा रही है। इस बीच अब चीन और तालिबान के बीच राजनयिक संबंध शुरू हो गए हैं। अफगानिस्तान की तालिबान सरकार ने शुक्रवार को घोषणा की है कि चीन ने उसके राजनयिक को मान्यता दे दी है। दो पड़ोसियों के बीच संबंध को जियोपॉलिटिक्स में एक महत्वपूर्ण अध्याय के तौर पर देखा जा रहा है। हालांकि चीन की ओर से अभी भी इसकी पुष्टि नहीं की गई है। अगर बीजिंग की ओर से इसकी पुष्टि हो जाती है तो चीन पहला ऐसा देश होगा जो तालिबान के सत्ता में आने के बाद पहली बार तालिबानी राजदूत को अपने यहां नियुक्त करेगा। अभी तक चीन या किसी अन्य देश ने अफगान प्रशासन को मान्यता नहीं दी है।
इस संबन्ध में तालिबानी विदेश मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि चीनी विदेश मंत्रालय के प्रोटोकॉल ऑफिस के महानिदेशक हांग लेई ने नव नियुक्त राजदूत असदुल्ला बिलाल करीमी से परिचय पत्र स्वीकार किया। होंग ने करीमी के आने को चीन और अफगानिस्तान के बीच सकारात्मक संबंधों को और मजबूत करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम बताया। तालिबान के बयान के मुताबिक चीन राष्ट्रीय संप्रभुता और अफगानिस्तान के लोगों के फैसले का सम्मान करता है। हम अफगानिस्तान के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करते और न ही अतीत में ऐसा किया है।
इधर करीमी ने चीनी पक्ष को आश्वासन दिया है कि अफगानिस्तान के क्षेत्र से किसी को कोई खतरा नहीं है। उन्होंने कहा कि क्षेत्रीय स्थिरता और सुरक्षा सभी के हित में है। नए राजदूत युवा और 30-35 वर्ष के हैं। वह हाल तक तालिबान के नेतृत्व वाले सूचना मंत्रालय में उप प्रवक्ता के रूप में कार्यरत थे। चीन ने अफगानिस्तान में फिर से संघर्ष के बढ़ने से रोकने में मदद को कहा है। इससे पहले पिछले सितंबर में चीन ने तालिबान के शासन में पहली बार राजदूत नियुक्त किया था। चीनी सरकार और कंपनियां लगातार अफगानिस्तान में निवेश करने की इच्छा जाहिर कर चुकी हैं। इस कारण पिछले कुछ महीनों में करार भी हुए हैं।