- केसीआर के अतिआत्मविश्वास ने तेलंगाना में डूबो दी सरकार

केसीआर के अतिआत्मविश्वास ने तेलंगाना में डूबो दी सरकार


हैदराबाद। ऐसा लगाता है कि भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) नेतृत्व सत्ता विरोधी लहर को समझने में विफल रहा और लगभग सभी मौजूदा विधायकों को दुबारा टिकट दिया गया। इससे पार्टी को भारी कीमत चुकानी पड़ी, क्योंकि लगभग एक दशक तक देश के सबसे युवा राज्य पर शासन करने के बाद बीआरएस को कांग्रेस के हाथों सत्ता गंवानी पड़ी। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि कुछ वर्गों में बीआरएस नेतृत्व के अहंकारी होने की सार्वजनिक धारणा और भ्रष्टाचार के आरोप भी पार्टी की बुरी तरह से हार के लिए जिम्मेदार अन्य कारक थे। पार्टी नेतृत्व का चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों और इतना ही नहीं एग्जिट पोल को भी स्वीकार करने से इनकार करना दर्शाता है, कि वह अपनी संभावनाओं को लेकर अति आत्मविश्वास में थी।

 

केसीआर कभी चिंतित नहीं होते; हम तेलंगाना में तीसरी बार जीतेंगे' - इंडिया  टुडे

चूंकि 119 सदस्यीय विधानसभा में पार्टी के कुल 104 विधायक थे, इसकारण केसीआर को लगाता था कि भले ही पार्टी कथित सत्ता विरोधी लहर के कारण 40 सीटें हार जाए, फिर भी वह सत्ता रहेगी। जैसा कि बाद में पता चला, पार्टी को 65 सीटों का भारी नुकसान हुआ, लगभग उतनी ही सीटें जितनी कांग्रेस ने सत्ता हासिल करने के लिए जीती हैं। टीआरएस (अब बीआरएस) ने 2014 में 63 सीटें जीतकर सत्ता की अपनी यात्रा शुरू की थी। यह एक नया राज्य था और वहां तेलंगाना की प्रबल भावना थी। केसीआर ने लगभग छह दशकों तक संयुक्त आंध्र प्रदेश में हुए भेदभाव के बाद राज्य को पुनर्निर्माण के पथ पर ले जाने का वादा किया था। उन्होंने स्थिति मजबूत करने के लिए कांग्रेस, तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) और अन्य दलों के विधायकों को लालच दिया। केसीआर ने अपनी सरकार के प्रदर्शन पर नए जनादेश की मांग कर 2018 में समय पूर्व चुनाव कराने का जुआ खेला। वापसी के प्रति आश्वस्त होकर, उन्होंने अधिकांश मौजूदा विधायकों को बरकरार रखा और चुनाव कार्यक्रम की घोषणा से बहुत पहले उम्मीदवारों की सूची की घोषणा की। केसीआर का दांव काम कर गया और पार्टी ने 88 सीटों के भारी बहुमत के साथ सत्ता बरकरार रखी।

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चुनाव के बाद, केसीआर ने मुख्य विपक्षी दल का लगभग सफाया करने के लिए कांग्रेस के एक दर्जन विधायकों को लालच दिया। अन्य दलों के चार और विधायक भी बीआरएस में शामिल हो गए, जिससे इसकी संख्या 104 हो गई। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, विधायक खरीदना भी लोगों के गले नहीं उतरा। हालांकि इस बार केसीआर ने समय से पहले चुनाव नहीं कराया, लेकिन उन्होंने नामांकन दाखिल करने की प्रक्रिया शुरू होने से लगभग ढाई महीने पहले 21 अगस्त को 115 उम्मीदवारों की घोषणा की। सात बदलावों को छोड़कर, उन्होंने सभी मौजूदा विधायकों को टिकट दिया। लंबे अंतराल ने कांग्रेस को असंतुष्ट बीआरएस नेताओं को अपने गुट में लाने का समय भी दे दिया। बीआरएस के कार्यकारी अध्यक्ष के.टी.रामा राव ने पार्टी द्वारा किए गए सर्वेक्षणों का हवाला देकर दावा किया था कि पार्टी को 2018 में हासिल की गई सीटों से अधिक सीटें मिलेंगी। अपने ही कर्मचारियों के एक वर्ग की संलिप्तता से तेलंगाना राज्य लोक सेवा आयोग (टीएसपीएससी) परीक्षाओं के प्रश्नपत्रों के लीक होने, बार-बार परीक्षाओं को स्थगित करने और यहां तक कि रद्द करने के कारण नौकरी के इच्छुक उम्मीदवारों को होने वाली समस्याओं और कुछ कथित आत्महत्याओं को लेकर बेरोजगार युवाओं में गुस्सा है। इन कारकों ने बेरोजगार युवाओं के एक बड़े वर्ग को केसीआर सरकार के खिलाफ कर दिया। 

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राजनीतिक विश्लेषक पलवई राघवेंद्र रेड्डी ने कहा कि कुछ लोग मनाते हैं कि भाजपा और बीआरएस के बीच एक मौन सहमति थी। इस विचार को तब बल मिला जब केंद्र की भाजपा सरकार कथित दिल्ली आबकारी नीति घोटाले में केसीआर की बेटी के. कविता के प्रति नरम रुख अपनाती दिखी। भगवा पार्टी के नेताओं ने पहले यह प्रचार किया था कि उन्हें गिरफ्तार किया जाएगा। कई आलोचकों ने भाजपा पर केसीआर की चुप्पी पर सवाल उठाए, जबकि कुछ महीने पहले वह भगवा पार्टी पर पूरी तरह हमला बोल रहे थे। वह भाजपा द्वारा बीआरएस विधायकों को तोड़ने के कथित प्रयास पर भी चुप हो गए थे। पिछले साल अक्टूबर में एक भाजपा नेता के तीन कथित एजेंटों को रंगे हाथों पकड़े जाने के बाद केसीआर ने भाजपा द्वारा उनकी सरकार को गिराने की साजिश का आरोप लगाया था, जब वे बीआरएस के चार विधायकों को भारी धन की पेशकश के साथ लुभाने की कोशिश कर रहे थे।
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