- साल गुजरा पर शांत नहीं हुआ मणिपुर

लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण के मतदान के दौरान हिंसा हुई। मतदान के बाद भी हिंसा जारी है। मतदान खत्म होने के 6 घंटे बाद ही कुकी उग्रवादियों ने रात करीब 12 बजे मोइरंग थाने के नारायण सेना गांव में सीआरपीएफ की 128 बटालियन के शिविर पर हमला कर दिया। ढाई घंटे तक आमने-सामने की मुठभेड़ होती रही। सीआरपीएफ के चार जवान घायल हुए। दो जवानों की अस्पताल पहुंचते ही मौत हो गई। दो जवान घायल अवस्था में अस्पताल में इलाज करा रहे हैं। इस मुठभेड़ में तीन उग्रवादी भी घायल हुए। मणिपुर में अभी तक सुरक्षा बलों के 12 से अधिक जवान शहीद हो चुके हैं। दोनों ही पक्षों के उग्रवादियों ने दर्जनों थाने के हथियार लूट लिए। केंद्र राज्य सरकार के प्रयास के बाद भी अभी तक यहां पर शांति स्थापित नहीं हो पाई। पिछले चार दशक में मणिपुर राष्ट्रीय विचारधारा से पूरी तरह जुड़ चुका था। राजनीति के चलते कुकी और मैतईं समुदाय के बीच में आरक्षण को लेकर सुनियोजित ढंग से अलगाववाद को बढ़ाया गया। राज्य सरकार और हाईकोर्ट के एक आदेश से सीमावर्ती राज्य मणिपुर पूरी तरह से न केवल अशांत हुआ, वरन प्रशासनिक संरक्षण के चलते कुकी समुदाय के सैकड़ों चर्च तोड़ दिए गए। महिलाओं की नंगी परेड निकाली गई। ईसाई और हिंदू धार्मिक ध्रुवीकरण का मणिपुर में जो खेल शुरू हुआ, वह तमाम कोशिशों के बाद भी शांत नहीं हो पा रहा है। कुकी और मैतई समुदाय के सेकड़ों लोगों की मौत हिंसक वारदातों में हो चुकी है। हजारों लोग शरणार्थी शिविरों में पिछले कई महीनों से रह रहे हैं। मणिपुर दो भागों में बट चुका है। कुकी और मेतई एक दूसरे के इलाकों में नहीं जा पा रहे हैं। वर्तमान मुख्यमंत्री वीरेन सिंह की अगुवाई में अलगाववाद का जो खेल खेला गया था, वह और मणिपुर के मुख्यमंत्री वीरेन सिंह दोनों ही बने हुए हैं। मुख्यमंत्री को लेकर दोनों पक्षों में नाराजगी है। दोनों पक्षों में शासन और प्रशासन का विश्वास पूरी तरह से खत्म हो चुका है। मेतई समुदाय मुख्यमंत्री वीरेन सिंह से नाराज है। उन्होंने जो वायदे मैतईं समुदाय से किए थे, वह उन्होंने पूरे नहीं किये। कुकी समुदाय और मेतई समुदाय के बीच हिंसा का वातावरण बनने से, दोनों ही समुदायों के लोग आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से परेशान हैं। इसका हल केंद्र सरकार नहीं निकाल पाई है। राज्य सरकार पर दोनों ही समुदायों को भरोसा नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने जरूर कुछ निर्देश दिए थे, लेकिन उनका पालन भी मणिपुर की सरकार नहीं कर रही है। इस कारण मणिपुर की अशांति खत्म होने का नाम नहीं ले रही है। दोनों ही समुदायों का वर्तमान मुख्यमंत्री और प्रशासनिक मशीनरी पर भरोसा नहीं रहा। प्रशासन नाम की कोई चीज मणिपुर में देखने को नहीं मिल रही है। मेतई समुदाय के इलाके में कुकी समुदाय के सरकारी कर्मचारी और अधिकारी नौकरी करने के लिए नहीं जा पा रहे हैं। इसी तरीके से मेतई समुदाय के सरकारी कर्मचारी और अधिकारी कुकी इलाकों में नहीं जा पा रहे हैं। इतने समय के बाद भी दोनों ही समुदाय के हजारों, शरणार्थी शिवरों में रहने के लिए बाध्य हैं। छोटे-छोटे बच्चे और महिलाएं शरणार्थी शिविरों में नारकीय जीवन जीने के लिए विवश हैं। स्कूल बंद है, कारोबार बंद है। पहली बार किसी राज्य में इस तरह की अशांत स्थिति इतने लंबे समय तक बनी रही है। लोग अपने ही राज्य में शरणार्थी के रूप में रह रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप करने के बाद भी स्थिति में सुधार नहीं हुआ है। सीमावर्ती राज्यों को लेकर जिस तरीके की उपेक्षा केंद्र सरकार द्वारा की जा रही है। यह चिंता की बात है। जल्द से जल्द और समय रहते मणिपुर में शांति स्थापित करने के लिए सुनियोजित और समग्र प्रयास नहीं किए गए, तो पूर्वोत्तर राज्यों में भारत सरकार को लेकर जो विश्वास पिछले 50 सालों में बना था, वह विश्वास टूटते देर नहीं लगेगी। भारत सरकार और भारत की न्यायपालिका को स्वयं संज्ञान लेकर मणिपुर के दोनों वर्गों के नागरिकों के बीच विश्वास कायम करने के लिए आगे आना होगा। यह विश्वास तभी कायम होगा जब वर्तमान मुख्यमंत्री वीरेन सिंह को मुख्यमंत्री के पद से हटाकर केंद्र सरकार मणिपुर को अपने नियंत्रण में ले। दोनों ही समुदाय का भरोसा शासन और प्रशासन पर बनाना होगा। बिना किसी राजनीति के कुकी और मेतई के बीच में समन्वय बनाने का प्रयास किए जाने पर ही मणिपुर शांत होगा। इसमें अब और विलंब किया गया तो इसके परिणाम बड़े घातक साबित हो सकते हैं।

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