- 'ये नया लोकतंत्र है...शांत रहें', जब इमरजेंसी में भी नहीं झुका दैनिक जागरण, इंदिरा गांधी को दी थी चुनौती

'ये नया लोकतंत्र है...शांत रहें', जब इमरजेंसी में भी नहीं झुका दैनिक जागरण, इंदिरा गांधी को दी थी चुनौती

इंदिरा गांधी द्वारा 1975 में लगाया गया आपातकाल लोकतंत्र पर एक 'काला धब्बा' था। इस दौरान दैनिक जागरण ने इस फैसले का कड़ा विरोध किया था। आपातकाल के दौरान विपक्षी नेताओं को जेल में डाल दिया गया था और मीडिया पर सेंसरशिप लगा दी गई थी, जिससे लोकतंत्र की मूल भावना लगभग खत्म हो गई थी। यह आपातकाल इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के बाद लगाया गया था।

नई दिल्ली। देश को आजाद हुए 77 साल हो चुके हैं, लेकिन 50 साल पहले सत्ता के नशे में चूर कांग्रेस सरकार ने देश पर एक काला धब्बा लगा दिया था। दरअसल, 25 जून 1975 की आधी रात को इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगाकर लोकतंत्र को कुचल दिया था।

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जब इंदिरा सरकार लोकतंत्र को शर्मसार करने का काम कर रही थी, तब दैनिक जागरण बिना डरे और बिना झुके निष्पक्ष पत्रकारिता का अपना कर्तव्य निभा रहा था। तब भी अखबार ने सरकार के गलत कामों का खुलकर विरोध किया था।

संपादकीय को खाली छोड़ा


दैनिक जागरण ने आपातकाल लगाने के फैसले का विरोध करते हुए अपना संपादकीय पेज खाली छोड़ दिया था। अखबार के संपादकीय पेज पर लिखा था, "नया लोकतंत्र? (सेंसर)... अंत में लिखा था... शांत रहें!

दरअसल, अखबार ने तब भी पत्रकारिता का अपना कर्तव्य निभाते हुए लोकतंत्र को जंजीरों में जकड़ने के इंदिरा सरकार के फैसले का खुलकर विरोध किया था। इसके साथ ही अखबार ने लोगों को शांति बनाए रखने का संदेश भी जारी किया था।

दैनिक जागरण का संपादकीय पेज, 27 जून 1975। दैनिक जागरण ने आपातकाल के विरोध में संपादकीय को खाली छोड़ दिया था।

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आपातकाल के पीछे का सच

इंदिरा सरकार द्वारा देश में लगाए गए आपातकाल की रूपरेखा तब लिखी गई थी, जब 12 जून 1975 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इंदिरा गांधी के चुनाव को रद्द करने का फैसला सुनाया था।

उस समय कांग्रेस में यह विचार चल रहा था कि निर्वाचित सांसद अपना नया नेता चुनें, लेकिन उससे पहले ही 25 जून की आधी रात को आपातकाल घोषित कर दिया गया।


इसके लिए संविधान में निर्धारित प्रक्रियाओं का भी पालन नहीं किया गया।

भले ही राष्ट्रपति संविधान और लोकतंत्र के पक्ष में खड़े होकर हस्ताक्षर न करते, देश पर ये काला धब्बा नहीं लगा होता. आपातकाल के दौरान लोकतंत्र की मूल भावना को लगभग नष्ट कर दिया गया था. विपक्षी नेताओं समेत सैकड़ों लोगों को जेल में डाल दिया गया था. इस दौरान जयप्रकाश नारायण, अटल बिहारी वाजपेयी, जॉर्ज फर्नांडिस जैसे कई बड़े नेताओं को काले कानूनों के तहत सलाखों के पीछे भेज दिया गया था. मीडिया पर सेंसरशिप इस दौरान इंदिरा सरकार ने सेंसरशिप लगाकर मीडिया का गला घोंटने का काम भी किया था. सैकड़ों पत्रकारों और विदेशी संवाददाताओं पर प्रतिबंध लगा दिया गया था. यहां तक ​​कि इस दौरान लोकतंत्र की बात करने वालों को भी या तो जेल में डाल दिया गया या फिर उन्हें गोली मारने का आदेश था.

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