मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि भारत में किसी मुस्लिम यूनिवर्सिटी का वाइस चांसलर अपॉइंट करना मुश्किल है। उन्होंने कहा कि अल-फलाह यूनिवर्सिटी का मालिक जेल में है और सरकार मुस्लिम लीडरशिप को दबा रही है।
जमीयत उलेमा-ए-हिंद के नेशनल प्रेसिडेंट मौलाना अरशद मदनी ने अल-फलाह यूनिवर्सिटी और देश में मुसलमानों की बुरी हालत को लेकर चल रहे विवाद पर एक बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा कि मौजूदा हालात ने किसी मुसलमान के लिए भारत की किसी भी यूनिवर्सिटी का वाइस चांसलर बनना लगभग नामुमकिन कर दिया है, और अगर कोई बन भी जाता है, तो उसका वही हाल होगा जो समाजवादी नेता आजम खान का हुआ था: जेल।
मौलाना मदनी दिल्ली में एक सेमिनार में बोल रहे थे, जो जमीयत के फाउंडर्स में से एक मुफ्ती किफायतुल्लाह देहलवी की ज़िंदगी और विरासत पर फोकस था। अपने भाषण के दौरान, उन्होंने अल-फलाह यूनिवर्सिटी और उसके मालिक को लेकर चल रहे विवाद का मुद्दा उठाया, और कहा कि सिस्टम नहीं चाहता कि मुसलमान तरक्की करें।
मदनी ने दिया यह अहम बयान
अपने भाषण में मौलाना मदनी ने कहा, "अल-फलाह यूनिवर्सिटी का मालिक जेल में है। कोई नहीं जानता कि वह कब तक वहां रहेगा। यह कैसा जस्टिस सिस्टम है जो किसी को तब भी जेल में रखता है जब केस पूरी तरह साबित नहीं हुआ हो?" उन्होंने आगे कहा कि आज़ादी के 75 साल बाद भी मुसलमानों को पढ़ाई, लीडरशिप और एडमिनिस्ट्रेटिव स्ट्रक्चर में आगे बढ़ने से रोका जा रहा है।
दुनिया भर के उदाहरण देते हुए मदनी ने कहा कि दुनिया भर में मुसलमानों की बड़ी ज़िम्मेदारियां हैं। उन्होंने कहा, "आज, ममदानी जैसा मुसलमान न्यूयॉर्क का मेयर बन सकता है। सादिक खान लंदन का मेयर बन सकता है, लेकिन भारत में कोई मुसलमान यूनिवर्सिटी का वाइस-चांसलर नहीं बन सकता, और अगर वह बन भी गया, तो वह आजम खान की तरह जेल चला जाएगा।" उनके इस बयान को अल-फलाह यूनिवर्सिटी के संदर्भ में देखा जा रहा है, जहां हाल ही में कई कानूनी जांच और गिरफ्तारियां हुई हैं।
'सरकारें चाहती हैं कि मुसलमान सिर न उठा पाएं' - मदनी का आरोप
मौलाना मदनी ने कहा, "आज़ादी के बाद से ही सरकारें मुसलमानों को कमज़ोर करने की कोशिश कर रही हैं। वे उनके पैरों तले से ज़मीन छीनना चाहती हैं, और काफ़ी हद तक उन्होंने ऐसा कर भी लिया है। आज मुसलमानों का हौसला टूट गया है।" उन्होंने कहा कि मुसलमानों में लीडरशिप की कमी का आरोप गलत है। अगर मुसलमान दुनिया भर के बड़े शहरों में मेयर बन सकते हैं, तो भारत में लीडरशिप को उभरने क्यों नहीं दिया जा रहा है?