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नये साहित्य में वर्ग संघर्ष नहीं, अपितु समन्वय पर जोर हो: अनिल शर्मा जोशी
नई दिल्ली। इन्द्रप्रस्थ साहित्य भारती (संबद्ध-अखिल भारतीय साहित्य परिषद्) द्वारा विश्व पुस्तक मेला, नई दिल्ली में ‘नए भारत का साहित्य’ विषय पर सेमिनार का आयोजन हुआ। सेमिनार के मुख्य वक्ता केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल के उपाध्यक्ष अनिल शर्मा जोशी ने अपने वक्तव्य में चिंता प्रकट करते हुए कहा कि भारतीय साहित्य में राष्ट्रीयता की उपेक्षा हो रही है, जबकि इसे विकसित करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि भक्ति काल में सर्वश्रेष्ठ साहित्य रचा गया। तुलसीदास, सूरदास, रवींद्रनाथ टैगोर, शरतचंद्र, निराला जैसे साहित्यकारों ने सामाजिक-सांस्कृतिक पुनर्जागरण का स्वर प्रखर किया। उन्होंने कहा कि आजादी के बाद खंडित साहित्य रचा जाने लगा। अब नए भारत के साहित्य में वर्ग-संघर्ष नहीं, अपितु समन्वय पर जोर हो। भारतीय संस्कृति, जिसमें परिवार महत्वपूर्ण है, पर बल देना होगा। वहीं अखिल भारतीय साहित्य परिषद् की राष्ट्रीय मंत्री एवं दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफेसर नीलम राठी ने कहा कि आज ऐसा साहित्य रचने की जरूरत है, जो भारतीय संस्कृति को प्रतिष्ठित करे। खांचे में बांटकर साहित्य पर विचार न हो। हम समस्यापरक साहित्य नहीं बल्कि समाधानपरक साहित्य का सृजन करें। इन्द्रप्रस्थ साहित्य भारती के संरक्षक तिलक चांदना ने कहा कि हमारा साहित्य लोकमंगल की भावना को प्रतिष्ठित करनेवाला हो। अखिल भारतीय साहित्य परिषद् के राष्ट्रीय मंत्री प्रवीण आर्य ने कहा कि हमारे साहित्यकार बाल साहित्य की उपेक्षा करते हैं। नए साहित्य में बाल साहित्य पर गंभीरता से विचार और लेखन हो। अखिल भारतीय साहित्य परिषद्, काशी प्रांत के मंत्री डॉ. देवी प्रसाद तिवारी ने कहा कि नये साहित्य में समग्रता-बोध पर जोर हो। डॉ. हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर की सहायक प्राध्यापक एवं लेखिका डॉ. सुजाता मिश्रा ने कहा कि नये भारत का साहित्य मन को संस्कारित करनेवाला हो। इस कार्यक्रम में सरोज दीक्षा ने भी अपने विचार रखे। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार विनोद बब्बर ने कहा कि आज के साहित्य की भूमिका मनोबल बढ़ानेवाला हो। साहित्यकार अपनी भाषाओं एवं अपनी धरती से जुड़ें। आधुनिकता और परंपरा का समन्वय हो। इस सेमिनार का संचालन संजीव सिन्हा ने किया एवं धन्यवाद ज्ञापन बृजेश गर्ग ने किया।
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