-हाल के वर्षों में सूकर पालन में अनेक नवयुवकों ने दिखाई रुचि,
भिण्ड। हमारे देश में सूकर पालन एक विशेष वर्ग द्वारा किया जाता है जबकि विदेशों में यह बड़ा व्यवसाय बन गया है। हाल के वर्षों में सूकर पालन में अनेक नवयुवकों ने रुचि दिखाई है। हमारे देश में सूकरों की संख्या एवं माँस उत्पादन, विश्व की तुलना में बहुत कम है। इसका मुख्य कारण सामाजिक प्रतिबंध, उचित नस्ल एवं समुचित पालन पोषण का अभाव तथा कुछ खास बीमारियां हैं। इसलिए आवश्यक हो जाता है कि समाज के कमजोर वर्ग के आर्थिक उत्थान हेतु सूकर पालन को घरेलू व्यवसाय का रूप दिया जाए यह बात डॉक्टर दीपांका ने बताई।
सूकर पालन की विशेषताएं:
डॉ.दीपंाक ने बताया कि सूकर पालन कम पूँजी एवं कम स्थान से शुरू किया जा सकता है। सूकर पालन में लागत धन की वापसी शीघ्र (9-12 माह) होती है। शूकर में वंश वृद्धि शीघ्र एवं अधिकतम (8-12) होती है। सूकर में शारीरिक वृद्धि 500-800 ग्रा./दिन होती है । • सूकर में आहार उपयोग दक्षता (3.5:1) अधिक होती है। शूकर उत्पादन में मजदूरी पर कम व्यय (10 प्रतिशत) होता है। बेकार खाद्य पदार्थ को कीमती उत्पाद में परिवर्तित करने की अद्भुत क्षमता होती है। सूकर पालन में नस्ल सुधार की संभावना शीघ्र होती है । सूकर पालन कम क्षेत्रफल में किया जा सकता है।
सूकर के उपयोग:
डॉ. दीपांका ने यह बताया कि चर्म उद्योग में शूकर चर्म की अत्यधिक माँग है। लगभग 200-300 ग्रा. बाल प्रति सूकर प्राप्त होता है, जिससे शेविंग, घुलाई, चित्रकारी के ब्रश, चटाईयाँ एवं पैराशूट की सीट बनती है। सूकर वध से 80 प्रतिशत खाने योग्य माँस प्राप्त होता है। सूकर चर्बी पशु आहार, मोमबत्ती, उर्वरक, सेविंग क्रीम, मल्हम तथा रसायन बनाने के काम आता है। सूकर रक्त, चीनी शुद्ध करने, बटन, जूतों की पॉलिश, दवाईयाँ, सासेज, पशु आहार खाद, वस्त्रों की रंगाई-छपाई हेतु प्रयोग किया जाता है । सूकर की अन्त:स्रावी ग्रंथियाँ जैसे इड्रीनल, पैराथयरायड, थायमस, पियूश ग्रंथि अग्नाशय, थाइरायड, पिनियल इत्यादि से मनुष्यों के लिए दवाईयाँ एवं इन्जेक्शन बनाये जाते हैं ।सूकर से प्राप्त कॉलेजन से औद्योगिक सरेज एवं जिलेटिन बनाया जाता है । हड्डियाँ, खुर व आँतों का प्रयोग कई तरह के औद्योगिक खाद बनाने में किया जाता है ।
डॉक्टर दीपांका ने बताया कि सूकर की उपयोगिता को देखते हुए आवश्यक हो जाता है कि राज्य सरकार कमजोर वर्ग के उत्थान हेतु इस व्यवसाय को बढ़ावा दे। इसके लिए उन्नतशील नस्ल आवश्यक टीके, दवाईयाँ, सस्ते आहार की उपलब्धता, माँस, प्रसंस्करण इकाईयों की स्थापना तथा विपणन सुविधाओं पर ध्यान देना होगा।