राष्ट्रीय महासागर प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईओटी) के निदेशक बालाजी रामकृष्णन ने मंगलवार को कहा कि पनडुब्बी 2026 के अंत तक रवाना हो सकती है। रामकृष्णन ने आईसीएआर-केंद्रीय समुद्री मत्स्य अनुसंधान संस्थान (सीएमएफआरआई) में कहा कि मिशन के तहत छह हजार मीटर की गहराई तक गहरे समुद्र में महासागर के रहस्यों को तलाशने का प्रयास किया जाएगा। इसे स्वदेशी तकनीक से विकसित किया गया है।
कोच्चि। भारत का पहला मानवयुक्त गहरे समुद्र मिशन छह हजार मीटर की गहराई तक महासागर के रहस्यों को तलाशेगा। राष्ट्रीय महासागर प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईओटी) के निदेशक बालाजी रामकृष्णन ने मंगलवार को कहा कि पनडुब्बी 2026 के अंत तक रवाना हो सकती है।
आईसीएआर-केंद्रीय समुद्री मत्स्य अनुसंधान संस्थान (सीएमएफआरआई) में रामकृष्णन ने कहा, मिशन के तहत छह हजार मीटर की गहराई तक गहरे समुद्र में महासागर के रहस्यों को तलाशने का प्रयास किया जाएगा।
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यह तीन वैज्ञानिकों के साथ समुद्री यात्रा पर रवाना होगी। एनआईओटी पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के तहत गहरे समुद्र मिशन के लिए नोडल एजेंसी है। स्वदेशी तकनीक से विकसित
स्वदेशी तकनीक से विकसित, 25 टन वजनी चौथी पीढ़ी के वाहन को गहरे समुद्र में अत्यधिक दबाव और तापमान को झेलने के लिए विशेष रूप से डिजाइन किया गया है, जिसमें टाइटेनियम से बना पतवार है। महासागर अनुसंधान के लिए गेम-चेंजर रामकृष्णन ने कहा, यह मिशन भारत के गहरे समुद्र अनुसंधान के लिए गेम-चेंजर साबित हो सकता है।
इससे गहरे समुद्र में संसाधनों के आकलन और समुद्री पर्यटन की संभावनाओं के नए रास्ते खुलेंगे। यह मिशन गहरे समुद्र क्षेत्र से महत्वपूर्ण नमूने एकत्र करने में सहायक होगा, जिससे वैज्ञानिकों को इस क्षेत्र में जीवों और पानी की अनूठी विशेषताओं को समझने का अवसर मिलेगा। इसे चरणबद्ध प्रक्रिया के तहत लॉन्च किया जाएगा।
इस साल के अंत तक 500 मीटर गहराई तक परीक्षण किया जाएगा। गोता लगाने में चार घंटे लगेंगे और बाहर आने में भी इतना ही समय लगेगा। - एक नई तकनीक विकसित की गई है, जिसका उद्देश्य बड़े पैमाने पर खुले समुद्र में उन्नत कृषि पर ध्यान केंद्रित करना है।
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इसका उपयोग पोषक तत्वों से भरपूर गहरे समुद्र के वातावरण का लाभ उठाकर मछली के विकास को अनुकूलित करने के लिए किया जा सकता है। विभिन्न सेंसर के साथ, यह मछली के बायोमास, विकास और गति और जल गुणवत्ता मापदंडों की दूर से निगरानी करने में सक्षम है। यह तकनीक भारत की खाद्य सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण हो सकती है।