सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी ज्यूडिशियल ऑफिसर को गलत आदेशों के लिए सस्पेंड नहीं किया जा सकता, लेकिन अगर आदेश साफ तौर पर बेईमानी वाले हों तो क्या होगा?
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (17 दिसंबर, 2025) को कहा कि जज रिटायरमेंट से कुछ दिन पहले ऐसे आदेश पास करते हैं, जैसे कोई बल्लेबाज क्रिकेट मैच के आखिरी ओवर में छक्के मार रहा हो। कोर्ट ने बाहरी वजहों से ऐसे आदेश पास करने की इस बढ़ती प्रवृत्ति पर अपनी नाखुशी जताई। सुप्रीम कोर्ट एक जज की याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसे दो आदेश पास करने के लिए रिटायरमेंट से 10 दिन पहले सस्पेंड कर दिया गया था।
चीफ जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस जॉयमाल्य बागची और जस्टिस विपुल पंचोली की बेंच ने कहा, "याचिकाकर्ता ने रिटायरमेंट से ठीक पहले छक्के मारना शुरू कर दिया। यह एक दुर्भाग्यपूर्ण चलन है। मैं इस पर विस्तार से बात नहीं करना चाहता।"
मध्य प्रदेश के डिस्ट्रिक्ट जज 30 नवंबर को रिटायर होने वाले थे, लेकिन उनके द्वारा पास किए गए दो आदेशों के कारण उन्हें 19 नवंबर को सस्पेंड कर दिया गया। हालांकि, 20 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश सरकार को राज्य में जजों की रिटायरमेंट की उम्र बढ़ाकर 62 साल करने का निर्देश दिया, जिससे उनका कार्यकाल एक साल और बढ़ गया।
CJI सूर्यकांत ने टिप्पणी की, "जब ज्यूडिशियल ऑफिसर ने ये विवादित आदेश पास किए थे, तब उन्हें पता नहीं था कि उनका कार्यकाल बढ़ने वाला है।" डिस्ट्रिक्ट जज की ओर से पेश हुए सीनियर एडवोकेट विपिन सांघी ने कोर्ट को बताया कि उनका सर्विस रिकॉर्ड बेदाग था और उन्हें अपनी सालाना गोपनीय रिपोर्ट में लगातार अच्छी रेटिंग मिली थी।
सस्पेंशन की वैधता पर सवाल उठाते हुए विपिन सांघी ने तर्क दिया कि ज्यूडिशियल अधिकारियों पर सिर्फ न्यायिक आदेश पास करने के लिए अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं की जा सकती। उन्होंने सवाल किया, "जब ऐसे आदेशों के खिलाफ अपील की जा सकती है या हायर ज्यूडिशियरी द्वारा उन्हें सुधारा जा सकता है, तो ऐसे न्यायिक आदेशों के लिए किसी अधिकारी को कैसे सस्पेंड किया जा सकता है?"
सुप्रीम कोर्ट वकील की दलीलों से सहमत हुआ और कहा कि आम तौर पर गलत आदेशों के लिए किसी ज्यूडिशियल ऑफिसर के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू नहीं की जा सकती। CJI सूर्यकांत ने न्यायिक गलती और कदाचार के बीच अंतर स्पष्ट करते हुए कहा, "उन्हें इसके लिए सस्पेंड नहीं किया जा सकता, लेकिन अगर आदेश साफ तौर पर बेईमानी वाले हों तो क्या होगा?"
कोर्ट ने जज से यह भी पूछा कि उन्होंने मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में इस फैसले को चुनौती क्यों नहीं दी, जिस पर वकील ने जवाब दिया कि पूरे हाई कोर्ट ने इस फैसले से सहमति जताई थी, इसलिए उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करना उचित समझा। सुप्रीम कोर्ट ने वकील की दलीलों पर टिप्पणी करते हुए कहा कि कई मौकों पर देखा गया है कि हाई कोर्ट में न्यायिक कार्यवाही में लिए गए सामूहिक फैसलों को पलट दिया गया है। कोर्ट ने उनकी याचिका सुनने से इनकार कर दिया और उन्हें हाई कोर्ट जाने का निर्देश दिया। इसके अलावा, कोर्ट ने इस बात पर भी आपत्ति जताई कि अधिकारी ने सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत आवेदन देकर अपने सस्पेंशन की जानकारी मांगी थी। कोर्ट ने कहा कि किसी सीनियर न्यायिक अधिकारी से जानकारी लेने के लिए RTI एक्ट का सहारा लेने की उम्मीद नहीं की जाती है। वह एक रिप्रेजेंटेशन दे सकते थे।