नई दिल्ली । एनडीए लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुट गया है और विपक्षी इंडिया गठबंधन में ऊहापोह के हालात बने हुए हैं। आप पार्टी को लेकर भी अटकलें हैं तो बसपा को लेकर भी यही स्थिति है। इंडिया गठबंधन की दिल्ली में हुई बैठक में अखिलेश यादव ने बसपा के साथ गठबंधन को लेकर कांग्रेस कई सवाल पूछे थे। अखिलेश ने बसपा की एंट्री पर इंडिया गठबंधन से सपा के बाहर निकलने तक की बात कह दी थी। आरएलडी के जयंत चौधरी ने भी दो टूक कह दिया था कि बसपा को गठबंधन में लिया गया तो हम बाहर निकल जाएंगे। दूसरी तरफ कांग्रेस की ओर से यह कहा गया कि बसपा से गठबंधन को लेकर कोई गंभीर बातचीत नहीं की गई है। अब सवाल ये भी उठ रहे हैं कि मायावती को लेकर इंडिया गठबंधन में इतनी ऊहापोह क्यों है। एक तरफ विपक्षी पार्टियां हर जगह एकजुट होकर बीजेपी और एनडीए के खिलाफ एक सीट पर एक उम्मीदवार उतारने की बात कर रही हैं तो बसपा के गठबंधन में आने पर सपा-आरएलडी जैसी पार्टियां इंडिया गठबंधन छोड़ने की धमकी क्यों दे रही हैं।
मायावती के नेतृत्व वाली बसपा ने कई मौकों पर ये कहा है कि वह किसी गठबंधन में शामिल हुए बगैर लोकसभा के चुनाव में अकेले उतरेगी। हालांकि मायावती ने विपक्षी दलों की पटना बैठक से पहले यह भी कहा था कि विपक्ष में चल रही हलचलों पर हमारी नजर है। यूपी कांग्रेस के नेता भी यह कहते रहे हैं कि मायावती के लिए इंडिया गठबंधन के दरवाजे हमेशा खुले हैं। हाल के दिनों में कांग्रेस और बसपा के बीच गठबंधन को लेकर बातचीत की खबरें भी आई थीं। सपा और आरएलडी ने इंडिया गठबंधन की दिल्ली में हुई बैठक में इस तरह की कोशिशों पर नाराजगी जाहिर करते हुए गठबंधन छोड़ने की धमकी दे दी तो सवाल ये भी हैं कि कांग्रेस आखिर बसपा को गठबंधन में लाने के पक्ष में क्यों है।
इसकी एक वजह ये है कि मायावती की पार्टी इंडिया गठबंधन में आई तो उत्तर प्रदेश में बीजेपी और एनडीए के खिलाफ एक सीट पर एक उम्मीदवार की परिकल्पना साकार हो सकती है। दूसरी वजह दलित वोट हैं। उत्तर प्रदेश में मायावती की पार्टी दलित वोट का प्रतिनिधित्व करती है। बसपा 20 फीसदी के करीब वोट शेयर मेंटेन रखने में सफल रही है। 2014 के लोकसभा चुनाव में बसपा का खाता तक नहीं खुल सका था, लेकिन पार्टी को तब भी 19.8 फीसदी वोट मिले थे। सपा को तब 22.5 और कांग्रेस को 7.5 फीसदी वोट मिले थे। ऐसा तब था जब सूबे में सपा की सरकार थी। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा और बसपा गठबंधन कर चुनाव मैदान में उतरे। तब बसपा को 19.4 फीसदी वोट शेयर के साथ 10 और सपा को 18.1 फीसदी वोट शेयर के साथ 5 सीटों पर जीत मिली थी। कांग्रेस का वोट शेयर गिरकर 6.4 फीसदी पहुंच गया था।
2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में सपा 22 फीसदी वोट शेयर के साथ 47 सीटों पर जीत मिली थी। वहीं बसपा को सीटें भले ही 19 थीं लेकिन वोट शेयर के मामले में पार्टी सपा से आगे थी। बसपा का वोट शेयर 22.4 फीसदी था। साल 2022 के यूपी चुनाव में बसपा एक सीट ही जीत सकी थी लेकिन तब भी पार्टी का वोट शेयर 13 फीसदी रहा था। अब कांग्रेस की कोशिशों पर सपा और आरएलडी ने ब्रेक लगा दिया है। सवाल ये भी उठ रहे हैं कि बसपा के गठबंधन में आने से आखिर सपा-आरएलडी का क्या नुकसान है जो ये दल मायावती की पार्टी को साथ लेने के खिलाफ हैं। कहा जाता है कि अखिलेश यादव ने आरएलडी के लिए अपने कोटे की 3 सीटें छोड़ी थीं। 2014 में खाता तक नहीं खोल पाई बसपा गठबंधन के बाद 10 सीटें जीत गई और सपा 5 सीटों पर सिमट गई थी।
हालांकि वोटो शेयर दोनों ही पार्टियों के गिरे थे। बसपा का वोट शेयर 2014 के 19.8 फीसदी से गिरकर 19.4 फीसदी पर आ गया। सपा का वोट शेयर 2014 के 22.5 फीसदी से 2019 में 18.1 फीसदी पर आ गया। बात बस लोकसभा चुनाव में प्रदर्शन या आरएलडी के लिए बसपा के सीट नहीं छोड़ने तक ही नहीं है। मायावती ने चुनाव नतीजों के बाद सपा के खिलाफ जिस तरह से वोट ट्रांसफर नहीं होने का आरोप लगाया था उसकी टीस अखिलेश के दिल में कहीं न कहीं अब भी है। हालाकि मायावती के तेवर हाल के दिनों में कुछ नरम पड़े हैं। लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की लोकसभा सीटों पर सीधा मुकाबला देखने को मिलता है या त्रिकोणीय इसका जवाब तो समय देगा, लेकिन बसपा की एंट्री के मुद्दे पर कांग्रेस और सपा-आरएलडी की दो राय हैं।