मुंबई। 2024 लोकसभा चुनावों की हार के बाद बीजेपी आत्ममंथन की मुद्रा में है। यह भी सामने आया है कि अजित पवार को महायुति में लेने के चलते बीजेपी और आरएसएस का एक बड़ा कैडर प्रचार के लिए नहीं निकला। एनसीपी वाली सीटों पर यह स्पष्ट तौर पर देखने को मिला। ऐसे में अगर बीजेपी विधानसभा चुनावों में अगर अजित पवार को साथ रखती है तो कार्यकर्ता फिर से निष्क्रिय रह सकते हैं। ऐसी स्थित में बीजेपी को नुकसान होगा। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के मुखपत्र ऑर्गनाइजर में छपे लेख में बीजेपी की हार के लिए अजित पवार से गठबंधन को बड़ा कारण बताया गया है। इसके बाद अब संभावना बढ़ गई है कि बीजेपी विधानसभा चुनावों से पहले अजित पवार की अगुवाई वाली एनसीपी से नाता तोड़ ले। 2019 के चुनावों में बीजेपी विधानसभा की 152 सीटों पर चुनाव लड़ी थी। तब उसने उद्धव की अगुवाई वाली शिवसेना के लिए 124 सीटें छोड़ी थी। एनडीए के बाकी सहयोगियों को 12 सीटें मिली थीं। आजीवन आरएसएस कार्यकर्ता रहे रतन शारदा ने ऑर्गेनाइज़र में अपने लेख में कहा कि अजित के साथ गठबंधन करने से बीजेपी की ब्रांड वैल्यू कम हो गई और यह बिना किसी अंतर के सिर्फ एक और पार्टी बन गई। अजित के आने से पार्टी भ्रष्टाचार के मोर्चे पर मुखर नहीं हो पाई। 2019 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी को 23 सीटें मिली थी। इसके बाद हुए विधानसभा चुनावों में बीजेपी को अपने बूते पर 105 सीटें हासिल हुई थी। बीजेपी राज्य में सबसे बड़ी पार्टी बन गई थी। अजित पवार की तरफ से जहां एक ओर 80 सीटों की मांग की गई है तो वहीं दूसरी बीजेपी का एक बड़ा गुट अजित पवार को महायुति में रखने का पक्षधर नहीं है। अजित पवार को जब महायुति (ग्रैंड अलांयस) लाया गया था, तब भी कुछ नेताओं ने इसे सही फैसला नहीं माना था।