- 'किसी भी कोर्ट को कमतर कहना संविधान के मूल्यों के खिलाफ', इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा

'किसी भी कोर्ट को कमतर कहना संविधान के मूल्यों के खिलाफ', इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि किसी भी अदालत को निचली अदालत कहना संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ है। जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस एजी मसीह ने 1981 के एक हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा पाए दो दोषियों को बरी करते हुए यह टिप्पणी की। किसी भी अदालत को निचली अदालत कहना हमारे संविधान के मूल्यों के खिलाफ है।

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि किसी भी अदालत को 'निचली अदालत' कहना संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ है। जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस एजी मसीह ने 1981 के एक हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा पाए दो दोषियों को बरी करते हुए यह टिप्पणी की।

कोर्ट को निचली अदालत कहने पर सुप्रीम कोर्ट नाराज


पीठ के लिए फैसला लिखने वाले जस्टिस ओका ने कहा- 'फैसला सुनाने से पहले हम 8 फरवरी 2024 के आदेश में दिए गए निर्देश को दोहराते हैं कि ट्रायल कोर्ट के रिकॉर्ड को निचली अदालत का रिकॉर्ड नहीं कहा जाना चाहिए। किसी भी अदालत को निचली अदालत बताना हमारे संविधान के मूल्यों के खिलाफ है।'

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पिछले साल फरवरी में जारी हुआ था सर्कुलर


उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री ने पिछले साल फरवरी में आदेश को प्रभावी करने के लिए सर्कुलर जारी किया था। उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालयों को निर्देश का संज्ञान लेना चाहिए और उसके अनुसार कार्य करना चाहिए।

पीठ का फैसला दो दोषियों की अपील पर आया, जिन्होंने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के अक्टूबर 2018 के फैसले को चुनौती दी थी। उच्च न्यायालय ने हत्या के मामले में उनकी दोषसिद्धि और जेल की सजा को बरकरार रखा था।

आजीवन कारावास की सजा


शीर्ष अदालत ने कहा कि मई 1981 में पुलिस ने एक व्यक्ति की हत्या और एक महिला को घायल करने के आरोप में तीन आरोपियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की थी। अक्टूबर 1982 में निचली अदालत ने दो आरोपियों को दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई, जबकि तीसरे आरोपी को बरी कर दिया। दोनों दोषियों ने निचली अदालत के आदेश को चुनौती देते हुए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था।

अभियोजन पक्ष ने निष्पक्ष जांच नहीं की


सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष ने निष्पक्ष जांच नहीं की, क्योंकि उसने अभियोजन पक्ष के कुछ गवाहों के हलफनामों के रूप में महत्वपूर्ण सामग्री को दबा दिया।

पीठ ने कहा- 'भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत, आरोपी को निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार है। यहां तक ​​कि पुलिस की भी निष्पक्ष जांच करने की जिम्मेदारी है। यह निष्पक्षता का एक महत्वपूर्ण पहलू है।'

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