- 'सुप्रीम कोर्ट CJI केंद्रित है, इसमें बदलाव की जरूरत'; जस्टिस अभय ओका ने अपने विदाई भाषण में कही बड़ी बात

'सुप्रीम कोर्ट CJI केंद्रित है, इसमें बदलाव की जरूरत'; जस्टिस अभय ओका ने अपने विदाई भाषण में कही बड़ी बात

सुप्रीम कोर्ट के जज एएस ओका का आखिरी कार्य दिवस शुक्रवार को था, अब वे सेवानिवृत्त हो चुके हैं। जस्टिस अभय ओका ने यह भी संकेत दिया कि यह बदलाव नए चीफ जस्टिस बीआर गवई के अधीन आ सकता है, जिन्होंने इस महीने की शुरुआत में कार्यभार संभाला है और नवंबर में अपनी सेवानिवृत्ति तक इस पद पर बने रहेंगे।

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट को लेकर समय-समय पर बदलाव की बातें होती रही हैं। कई जजों ने सुप्रीम कोर्ट में सुधारों की बात की है और कई सुधार हुए भी हैं। वहीं, शुक्रवार को अपने आखिरी कार्य दिवस पर सुप्रीम कोर्ट के जज एएस ओका ने बड़ी बात कही। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट चीफ जस्टिस केंद्रित कोर्ट है और इसमें बदलाव की जरूरत है।

जज एएस ओका का आखिरी कार्य दिवस शुक्रवार को था


सुप्रीम कोर्ट के जज एएस ओका का आखिरी कार्य दिवस शुक्रवार को था, अब वे सेवानिवृत्त हो चुके हैं। जस्टिस ओका ने यह भी संकेत दिया कि यह बदलाव नए चीफ जस्टिस बीआर गवई के अधीन आ सकता है, जिन्होंने इस महीने की शुरुआत में कार्यभार संभाला है और नवंबर में अपनी सेवानिवृत्ति तक इस पद पर बने रहेंगे।

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सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन द्वारा आयोजित अपने विदाई समारोह में बोलते हुए जस्टिस ओका ने कहा कि हाई कोर्ट सुप्रीम कोर्ट से ज्यादा लोकतांत्रिक तरीके से काम करते हैं।

अपने भाषण में दिए संकेत


जज एएस ओका ने कहा कि हाई कोर्ट कमेटियों के जरिए काम करते हैं, जबकि सुप्रीम कोर्ट चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया केंद्रित है। इसमें बदलाव की जरूरत है। नए सीजेआई के आने से आप यह बदलाव देखेंगे।

उन्होंने कहा कि मुझे बहुत खुशी है कि चीफ जस्टिस संजीव खन्ना (जो 13 मई को रिटायर हुए) ने हमें पारदर्शिता के रास्ते पर आगे बढ़ाया। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के हर जज को विश्वास में लेकर फैसले लिए। जस्टिस गवई के खून में लोकतांत्रिक मूल्य हैं।

न्यायपालिका के शीर्ष स्तर पर सुधार की गुंजाइश वाले अन्य क्षेत्रों की ओर इशारा करते हुए जस्टिस ओका ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट की अनदेखी की है।

ट्रायल कोर्ट को कभी अधीनस्थ कोर्ट न कहें


उन्होंने कहा कि हमें ट्रायल कोर्ट और आम आदमी के बारे में भी सोचना चाहिए। हमारी ट्रायल और जिला अदालतों में बहुत सारे मामले लंबित हैं...ट्रायल कोर्ट को कभी अधीनस्थ कोर्ट न कहें। यह संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ है... 20 साल बाद किसी को सजा देना मुश्किल है।

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