- अनूठी पहल: गांव वाले प्लास्टिक के बदले दे रहे हैं खाना, कचरे के बदले दे रहे हैं सैनेटरी पैड

अनूठी पहल: गांव वाले प्लास्टिक के बदले दे रहे हैं खाना, कचरे के बदले दे रहे हैं सैनेटरी पैड

प्लास्टिक के बदले भोजन और कूड़े के बदले सैनिटरी पैड जैसे अभियान चलाकर देश के 77 प्रतिशत गांवों को खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ) प्लस मॉडल के रूप में स्थापित करने का प्रयास किया जा रहा है। कोई गांव ओडीएफ प्लस मॉडल का दर्जा तभी प्राप्त कर सकता है, जब वह खुले में शौच मुक्त गांव के रूप में अपना दर्जा बनाए रखने में सफल हो।

नई दिल्ली। प्लास्टिक के बदले भोजन और कूड़े के बदले सैनिटरी पैड जैसे अभियान चलाकर देश के 77 प्रतिशत गांवों को खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ) प्लस मॉडल के रूप में स्थापित करने का प्रयास किया जा रहा है।

कैसे कोई गांव ओडीएफ प्लस मॉडल का दर्जा प्राप्त कर सकता है


कोई गांव ओडीएफ प्लस मॉडल का दर्जा तभी प्राप्त कर सकता है, जब वह खुले में शौच मुक्त गांव के रूप में अपना दर्जा बनाए रखने में सफल हो, ठोस और तरल अपशिष्ट प्रबंधन की क्षमता विकसित करे, स्वच्छता मानकों को पूरा करे और ओडीएफ प्लस की जानकारी और संदेशों का प्रसार करे।

आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, 5.10 लाख से अधिक गांवों में ठोस अपशिष्ट निपटान प्रणाली है, जबकि 5.26 लाख से अधिक गांव तरल अपशिष्ट का प्रबंधन करने में सक्षम हैं। 1,200 से अधिक पंजीकृत बायोगैस संयंत्र मौजूद हैं 1,200 से अधिक पंजीकृत बायोगैस संयंत्र मौजूद हैं, जबकि कचरा संग्रहण के लिए 6.38 लाख से अधिक वाहन तैनात किए गए हैं।

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हालांकि, ग्रामीण भारत में कचरा प्रबंधन का श्रेय मुख्य रूप से स्थानीय नेतृत्व और सामुदायिक पहल को जाता है। प्लास्टिक कचरा स्वच्छता की दिशा में एक बड़ी बाधा है प्लास्टिक कचरा स्वच्छता की दिशा में एक बड़ी बाधा है। हरियाणा के करनाल जिले की सुमन डांगी ने इससे निपटने के लिए एक अनूठी पहल की है। 

वह 500 ग्राम स्वच्छ और रिसाइकिल करने योग्य कचरा लाने वाले लोगों को गर्म खाना खिलाती हैं। सुमन और उनके स्वयं सहायता समूह ने 50,000 रुपये के ऋण से यह पहल शुरू की। वह अब तक 1,500 किलोग्राम से अधिक प्लास्टिक कचरा एकत्र कर चुकी हैं और 3,000 से अधिक लोगों को गर्म खाना परोस चुकी हैं। 

भुसली गांव में अटल किसान मजदूर कैंटीन में प्लास्टिक के बदले गर्म खाना परोसने की पहल चला रही सुमन ने बताया कि यह विचार जरूरत के चलते आया। प्लास्टिक हर जगह मौजूद है और कई लोगों को दो वक्त का खाना भी नहीं मिल पाता। हमने इन दोनों समस्याओं से निपटने का तरीका ढूंढ़ निकाला।

मेरा प्लास्टिक, मेरी ज़िम्मेदारी पहल की शुरुआत


स्वच्छता को बढ़ावा देने के लिए ऐसी ही अनूठी पहल उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले के ऊंचाडीह गांव में भी चलाई जा रही है। वहां महिलाएं प्लास्टिक प्रदूषण और मासिक धर्म स्वच्छता जैसी चीजों पर मिलकर काम करने की कोशिश कर रही हैं। मेरा प्लास्टिक, मेरी ज़िम्मेदारी पहल के तहत ऊंचाडीह ग्राम पंचायत की महिलाओं को दो किलो प्लास्टिक कचरा इकट्ठा करने पर सैनिटरी पैड का एक पैकेट दिया जा रहा है।

ग्राम प्रधान अर्चना त्रिपाठी ने शुरू की पहल


ग्राम प्रधान अर्चना त्रिपाठी द्वारा शुरू की गई पहल को स्वास्थ्य कर्मियों से लेकर शिक्षकों तक का समर्थन मिल रहा है, जो महिलाओं और लड़कियों को प्लास्टिक कचरा इकट्ठा करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।

पड़ोसी घोरावल ब्लॉक में ग्राम प्रधान परमेश्वर पाल रोजाना ई-रिक्शा पर प्लास्टिक कचरा इकट्ठा करते हैं और स्थानीय लोगों को सिंगल यूज प्लास्टिक का इस्तेमाल कम करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।

पाल के मुताबिक, यह कोई ग्लैमरस काम नहीं है, लेकिन इससे बातचीत शुरू होती है और धीरे-धीरे आदतें बदलती हैं। उत्तराखंड में गंगा के किनारे बसा सिरासु गांव कचरा प्रबंधन मॉडल अपना रहा है, जिससे राजस्व बढ़ाने में भी मदद मिल रही है।

सिरासु, जिसने ओडीएफ प्लस मॉडल का दर्जा हासिल किया है


सिरासु, जिसने ओडीएफ प्लस मॉडल का दर्जा हासिल किया है, अपने स्वच्छता अभियान के लिए पर्यटन के माध्यम से धन जुटाता है। स्थानीय पंचायत 2018 से प्री-वेडिंग फोटो शूट के लिए 1,000 रुपये ले रही है। यह टेंट और लाइट जैसे उपकरण भी किराए पर देती है।

पर्यटक बुनियादी ढांचे में सुधार


इससे पिछले सात वर्षों में इसे लगभग 50 लाख रुपये कमाने में मदद मिली है। उक्त राशि का उपयोग शौचालयों के रखरखाव, प्लास्टिक अपशिष्ट संग्रह केंद्रों के संचालन और पर्यटक बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए किया जा रहा है।

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