सफेद दाग के इलाज के लिए पीएमसीएच की ओपीडी में औसतन हर दिन 20 से 30 मरीज आते हैं। इनमें से 40 से 80 फीसदी मरीज फोटोथेरेपी (नैरोबैंड यूवीबी) से ही ठीक हो जाते हैं।
पटना। विटिलिगो यानी सफेद दाग कोई संक्रामक या छूत की बीमारी नहीं है। यह एक सामान्य त्वचा विकार है, जिसमें शरीर के कुछ हिस्सों पर मेलेनिन (त्वचा को रंग देने वाला पिगमेंट) बनना बंद हो जाता है। इससे उस जगह पर सफेद दाग पड़ने लगते हैं। देश और राज्य की चार से पांच फीसदी आबादी इससे पीड़ित है।
सफेद दाग के इलाज के लिए पीएमसीएच की ओपीडी में औसतन हर दिन 20 से 30 मरीज आते हैं। इनमें से 40 से 80 फीसदी मरीज फोटोथेरेपी (नैरोबैंड यूवीबी) से ही ठीक हो जाते हैं। होंठ, पैर, हथेली पर होने वाले दाग एक्साइमर लेजर से ठीक होते हैं। कुछ मामलों में स्किन ग्राफ्टिंग, पंच या ब्लिस्टर ग्राफ्टिंग की जरूरत पड़ती है।
इसके बावजूद भी आईजीआईएमएस और एम्स पटना में सर्जरी नहीं होने से पीएमसीएच-एनएमसीएच में इलाज के लिए मरीजों की भीड़ उमड़ रही है। यह जानकारी मंगलवार को आईडीएवीएल के राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य और पीएमसीएच में त्वचा रोग विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अभिषेक कुमार झा, एनएमसीएच के डॉ. विकास शंकर, डॉ. सुधांशु सिंह और डॉ. पीके राय ने 25 जून को मनाए जाने वाले विश्व सफेद दाग दिवस के अवसर पर दी।
जागरूकता और आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए मनाया जाता है दिवस
डॉ. अभिषेक कुमार झा ने बताया कि आज भी आम लोगों में खासकर ग्रामीण इलाकों में सफेद दाग को लेकर कई भ्रांतियां और भेदभाव व्याप्त हैं। सामाजिक कलंक के कारण मरीज मानसिक रूप से तनावग्रस्त हो जाता है। ऐसे में आम लोगों को इस बीमारी के प्रति जागरूक करने और मरीजों में आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए हर साल सफेद दाग दिवस मनाया जाता है।
सही समय पर त्वचा रोग विशेषज्ञ से सलाह लेकर दवा, लेजर, फोटोथेरेपी और सर्जरी से काफी हद तक सफेद दाग को हटाया या नियंत्रित किया जा सकता है। राज्य की कुल आबादी का करीब 4 से 5 प्रतिशत हिस्सा इससे प्रभावित है। महिलाओं की संख्या पुरुषों से ज्यादा है। ओपीडी में इलाज के लिए आने वाले मरीजों में सबसे ज्यादा 30 साल तक की उम्र के लोग हैं। हालांकि, यह समस्या बच्चों में भी देखने को मिलती है। इस बीमारी का सबसे बुरा पहलू यह है कि 77 प्रतिशत मामलों में यह बीमारी बढ़ती जाती है।
विटिलिगो के बारे में जानने योग्य तथ्य
- समय पर पहचान, जल्दी इलाज से बेहतर परिणाम मिलते हैं।
- यह गलत धारणा दूर करें कि यह कुष्ठ रोग जैसी संक्रामक या गंभीर बीमारी है।
- मरीजों के आत्मविश्वास और जीवन की गुणवत्ता के लिए मनोवैज्ञानिक समर्थन और स्वीकृति जरूरी है।
- भारत में विटिलिगो के मरीजों का जीवन स्तर प्रभावित होता है, आत्मसम्मान और स्वाभिमान में गिरावट देखी गई है।
- मरीज मानसिक समर्थन, परामर्श और मनोवैज्ञानिक सुविधाओं की तलाश में आते हैं।