ऊर्जा सचिव दिलीप जावलकर ने कहा कि उत्तर प्रदेश-उत्तराखंड के बंटवारे के समय तैयार की गई रिपोर्ट, फाइलों और वित्तीय देनदारियों की जांच के बाद ही कोई फैसला लिया जाएगा।
उत्तराखंड के बिजली उपभोक्ताओं पर भारी वित्तीय बोझ पड़ने की संभावना एक बार फिर मंडरा रही है। पावर कॉर्पोरेशन ने राज्य सरकार के सामने 5900 करोड़ रुपये की बड़ी मांग रखी है। कॉर्पोरेशन का कहना है कि उत्तर प्रदेश से ट्रांसफर की गई कई पुरानी योजनाओं का भुगतान अभी तक नहीं मिला है। इस रकम के न मिलने से कॉर्पोरेशन की वित्तीय स्थिति खराब हो गई है, और इसका असर उपभोक्ताओं की जेब पर पड़ सकता है।
पावर कॉर्पोरेशन के अनुसार, बंटवारे के समय यूपी सरकार को बिजली टैक्स, पानी टैक्स और बिजली सेस का एक बड़ा भुगतान करना था, जो अभी तक नहीं मिला है। कॉर्पोरेशन का दावा है कि उसकी देनदारियां 6000 करोड़ रुपये से ज़्यादा हो गई हैं। इसलिए, अगर राज्य सरकार 5900 करोड़ रुपये की मांग पूरी नहीं करती है, तो उसे यह रकम उपभोक्ताओं से वसूलनी पड़ सकती है।
वित्त विभाग ने इस भुगतान पर आपत्ति जताई है। सरकार ने पावर कॉर्पोरेशन से साफ आधार और दस्तावेज़ मांगे हैं जिनके आधार पर यह रकम मांगी जा रही है। ऊर्जा सचिव दिलीप जावलकर ने कहा कि उत्तर प्रदेश-उत्तराखंड के बंटवारे के समय तैयार की गई रिपोर्ट, फाइलों और वित्तीय देनदारियों की जांच के बाद ही कोई फैसला लिया जाएगा।
पावर कॉर्पोरेशन का कहना है कि बिजली खरीद, ब्याज लागत, लाइन रखरखाव और अन्य खर्चों का दबाव लगातार बढ़ रहा है। अगर मांगी गई रकम नहीं मिलती है, तो उपभोक्ताओं पर बिजली की दरों में बड़ी बढ़ोतरी करनी पड़ेगी। पूर्व एमडी आर. मीना ने भी चेतावनी दी है कि अगर इस मामले को जल्द ही हल नहीं किया गया, तो आम जनता को बड़ा झटका लग सकता है। सूत्रों के अनुसार, हाल ही में हुई कैबिनेट बैठक में इस मुद्दे पर कोई फैसला नहीं हो सका। बैठक में कहा गया कि यह मामला सालों से लंबित है और केंद्र सरकार से अभी तक कोई स्पष्ट निर्देश नहीं मिले हैं।
बिजली उपभोक्ताओं में चिंता बढ़ी
इस पूरे विवाद के कारण बिजली उपभोक्ताओं में चिंता बढ़ गई है। अगर राज्य सरकार और पावर कॉर्पोरेशन के बीच जल्द ही कोई समाधान नहीं निकलता है, तो आने वाले समय में बिजली की दरों में बड़ी बढ़ोतरी देखने को मिल सकती है। सरकार पर अब जल्द फैसला लेने और जनता को राहत देने का दबाव है ताकि 5900 करोड़ रुपये का यह संभावित बोझ उपभोक्ताओं पर न पड़े।
राज्य कैबिनेट ने इस प्रस्ताव को मंज़ूरी नहीं दी।
यह पूरा मामला मूल रूप से दोनों राज्यों के बीच लंबे समय से चले आ रहे विवाद के बाद उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा की गई संपत्तियों के पुनर्वितरण से जुड़ा है। इसी आधार पर, UPCL अब संपत्तियों पर रिटर्न की मांग कर रहा है। शुरुआत में, UPCL ने राज्य सरकार से यह राशि चुकाने और इसे राज्य सरकार को देय बकाया के मुकाबले एडजस्ट करने के लिए कहा था, लेकिन राज्य कैबिनेट ने इस प्रस्ताव को मंज़ूरी नहीं दी।
UERC सबसे पहले इस दावे की स्वीकार्यता की जांच करेगा।
इसके बाद, UPCL ने अपने बोर्ड से UERC (उत्तराखंड इलेक्ट्रिसिटी रेगुलेटरी कमीशन) को दावा प्रस्तुत करने की अनुमति देने का अनुरोध किया। बोर्ड ने केवल इस बात को मंज़ूरी दी कि मामला रेगुलेटर के सामने रखा जा सकता है। अब, UERC सबसे पहले इस दावे की स्वीकार्यता की जांच करेगा। भले ही दावा वैध पाया जाए, कोई भी बिजली नियामक आयोग एक ही साल के बिजली बिल में उपभोक्ताओं पर 20 साल पुराना बकाया थोपने का फैसला नहीं करता है। इसलिए, यह दावा कि उपभोक्ताओं से तुरंत 5900 करोड़ रुपये वसूल किए जाएंगे, सिर्फ़ एक अटकल है।
अंतिम फैसला कमीशन (UERC) का होगा।
भले ही दावा स्वीकार कर लिया जाए और UPCL बिल जमा करे, अंतिम फैसला कमीशन (UERC) का होगा। इस सुनवाई के दौरान, कमीशन सभी उपभोक्ता श्रेणियों – घरेलू, वाणिज्यिक और औद्योगिक – को अपना पक्ष रखने का पूरा मौका देता है। देश में ऐसा एक भी उदाहरण नहीं है जहां किसी बिजली नियामक आयोग ने उपभोक्ताओं पर एक ही साल में 20 साल का बकाया थोपा हो। इसलिए, इस समय इस मामले को लेकर किसी भी तरह का डर या भ्रम फैलाने की ज़रूरत नहीं है।