- नाथूराम गोडसे 20 जनवरी को ही गांधीजी को मारना चाहता था, कैसे फेल हो गई प्लानिंग?

नाथूराम गोडसे 20 जनवरी को ही गांधीजी को मारना चाहता था, कैसे फेल हो गई प्लानिंग?

महात्मा गांधी की हत्या का पहला प्रयास उनकी मृत्यु से 10 दिन पहले 20 जनवरी 1948 को किया गया था। हालांकि, वे इस हमले में बाल-बाल बच गए थे। जानिए कैसे 20 जनवरी को गांधीजी की हत्या की योजना विफल हुई।


नाथूराम गोडसे जयंती: नाथूराम गोडसे का जन्म आज ही के दिन 19 मई 1910 को हुआ था। बारामती के एक ब्राह्मण परिवार में जन्मे नाथूराम गोडसे के माता-पिता ने उनसे पहले तीन बेटों को खो दिया था। परिवार को समझ में आ गया कि ऐसा किसी श्राप की वजह से हो रहा है, इसलिए उन्होंने अपने चौथे बेटे नाथूराम की नाक छिदवा दी और उसमें नथ पहना दी और उसे लड़कियों की तरह कपड़े पहनाने लगे। 


गांव में उन्हें नाथमल के नाम से जाना जाता था। बाद में दूसरे बेटे के जन्म के बाद उनका नाम बदलकर नाथूराम रख दिया गया। अपने कट्टरपंथी विचारों के कारण इस नाथूराम गोडसे ने 30 जनवरी 1948 को महात्मा गांधी के सीने में अपनी पिस्तौल से तीन गोलियां दाग दीं। गोडसे और उसके साथियों ने पहले 20 जनवरी को महात्मा गांधी की हत्या की योजना बनाई थी, लेकिन उनकी कोशिश नाकाम रही और गांधीजी 10 दिन और जीवित रहे।


20 जनवरी को हमले में बाल-बाल बचे


महात्मा गांधी की हत्या का पहला प्रयास उनकी मृत्यु से 10 दिन पहले 20 जनवरी 1948 को किया गया था। हालांकि, वे इस हमले में बाल-बाल बचे थे। 20 जनवरी के बाद अगले 10 दिनों तक उन्हें अपनी मौत की आहट सुनाई देती रही। 

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अपने अंतिम दिनों में महात्मा गांधी ने अपनी मृत्यु की इस हद तक भविष्यवाणी कर दी थी कि ऐसा लगता था जैसे उन्हें पता था कि 30 जनवरी या उससे पहले उनके साथ ऐसा कुछ होने वाला है। उन्होंने कई अखबारों, जनसभाओं और प्रार्थना सभाओं के जरिए कम से कम 14 बार इसका जिक्र किया था।


21 जनवरी को महात्मा गांधी ने कहा था कि अगर कोई मुझ पर बहुत नजदीक से गोली चलाए और मैं उन गोलियों का सामना मुस्कुराते हुए मन ही मन राम का नाम जपते हुए करूं, तो मैं बधाई का पात्र हूं। 30 जनवरी वह काला दिन था, जब महात्मा गांधी ने इस देश को अलविदा कहा था। 30 जनवरी, 1948 को नाथूराम गोडसे ने बिड़ला भवन में महात्मा गांधी की हत्या कर दी थी।


 20 जनवरी को गांधीजी की हत्या की योजना कैसे विफल हुई? 

योजना के अनुसार मदनलाल पाहवा को बम फेंकना था, जिससे भगदड़ मच जाए और फिर भगदड़ में गांधीजी को गोली लग जाए, लेकिन पाहवा घबरा गया और बम गांधीजी से बहुत दूर और समय से पहले फट गया। दिगंबर बड़गे को गांधीजी पर गोली चलानी थी, लेकिन वह बम विस्फोट के बाद मची भगदड़ और शोर से डर गया और गोली नहीं चला सका। बम विस्फोट के तुरंत बाद मौके पर मौजूद लोगों ने मदनलाल पाहवा को पकड़ लिया। पूछताछ में उसने साजिश के बारे में जानकारी दी, जिसमें नाथूराम गोडसे और अन्य शामिल थे। पाहवा से जानकारी मिलने के बावजूद दिल्ली पुलिस ने मामले में कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं की और न ही गोडसे या अन्य साजिशकर्ताओं को गिरफ्तार करने की कोशिश की। बाद में अदालत ने पुलिस की इस लापरवाही की कड़ी आलोचना की।

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