इजराइल के ईरान पर हमले ने भारत की कूटनीति को लेकर कई चिंताएं खड़ी कर दी हैं। विदेश मंत्रालय ने दोनों देशों के साथ कूटनीति और संवाद पर जोर दिया है। दोनों देशों के साथ भारत के अच्छे संबंध हैं, जिसके चलते किसी एक का पक्ष लेना मुश्किल है। भारत खाड़ी क्षेत्र में काम कर रहे भारतीयों की सुरक्षा, महंगे तेल की कीमतों और चाबहार पोर्ट की प्रगति को लेकर चिंतित है।
नई दिल्ली। इजराइल ने गुरुवार देर रात ईरान पर हमला करके खाड़ी क्षेत्र में तनाव को और गहरा कर दिया है, साथ ही इसने कई स्तरों पर भारत की कूटनीति के लिए भी चिंताएं खड़ी कर दी हैं। भारतीय विदेश मंत्रालय ने इजराइल और ईरान के हालात पर न सिर्फ गंभीर चिंता जताई है, बल्कि दोनों पक्षों के बीच कूटनीति और संवाद पर जोर देने की अपील भी की है। भारत की चिंता के कई कारण हैं।
अगर आप देश और दुनिया की ताज़ा ख़बरों और विश्लेषणों से जुड़े रहना चाहते हैं, तो हमारे यूट्यूब चैनल और व्हाट्सएप चैनल से जुड़ें। 'बेजोड़ रत्न' आपके लिए सबसे सटीक और बेहतरीन समाचार प्रदान करता है। हमारे यूट्यूब चैनल पर सब्सक्राइब करें और व्हाट्सएप चैनल पर जुड़कर हर खबर सबसे पहले पाएं।
youtube- https://www.youtube.com/@bejodratna646
भारत की चिंता का सबसे बड़ा कारण यही है सबसे बड़ा कारण यह है कि इन दोनों देशों के साथ भारत के अच्छे संबंध हैं, जिसके चलते भारत किसी एक देश के साथ खड़ा होने की स्थिति में नहीं है। इजराइल जहां भारत के सबसे अहम रक्षा साझेदार देशों में से एक है, वहीं ईरान के साथ भारत के ऐतिहासिक संबंध हैं। ईरान ने इस्लामिक देशों के संगठन (OIC) के मंच पर कई मौकों पर भारत की मदद की है। अमेरिका के लगातार दबाव के बावजूद भारत ने ईरान के साथ अपने रिश्ते बनाए रखे हैं।
खाड़ी क्षेत्र में 1 करोड़ भारतीयों की सुरक्षा
सबसे पहले, अगर ईरान और इजरायल के बीच यह युद्ध गंभीर हो जाता है, तो खाड़ी क्षेत्र में काम कर रहे 90 लाख से 1 करोड़ भारतीय नागरिकों की सुरक्षा को लेकर चिंता हो सकती है। इन भारतीयों ने पिछले साल ही करीब 45 अरब डॉलर की रकम भेजी है जो देश की अर्थव्यवस्था में अहम भूमिका निभाती है।
इजराइल में ही पिछले कुछ महीनों में 12 हजार भारतीयों को काम पर भेजा गया है। इजरायल में 18-20 हजार भारतीय रहते हैं। इनमें से कई छात्र हैं। इसी तरह ईरान में भी 10 हजार से ज्यादा भारतीय रहते हैं। भारत इन सभी को सुरक्षा मुहैया कराने को लेकर चिंतित है। भारत के बयान से यह बात साफ हो जाती है।
विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में कहा है, "हम ईरान और इजरायल के हालात को लेकर बेहद चिंतित हैं। हम परमाणु ठिकानों पर हमले की खबरों और वहां बदलते हालात पर बेहद सतर्क नजर रख रहे हैं। भारत दोनों पक्षों से अपील करता है कि वे हालात को और गंभीर बनाने वाला कोई कदम न उठाएं।
भारत के दोनों देशों के साथ दोस्ताना संबंध हैं और हम मौजूदा हालात को लेकर हर तरह की मदद करने के लिए तैयार हैं। दोनों देशों में हमारे मिशन नागरिकों के संपर्क में हैं। हम सभी भारतीय नागरिकों को सुरक्षित रहने और स्थानीय सुरक्षा सलाह का पालन करने की सलाह देते हैं।"
महंगा क्रूड- बड़ी मुसीबत
खाड़ी में जब हालात बिगड़ते हैं तो हमेशा कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी होती है। लंबे समय से बेहद नरम माहौल में चल रहे कच्चे तेल की कीमत इजरायल-ईरान विवाद के बाद शुक्रवार को 9 फीसदी महंगी होकर 75 डॉलर प्रति बैरल को पार कर गई है। हाल के महीनों में एक दिन में कच्चे तेल की कीमतों में यह सबसे बड़ी बढ़ोतरी है। भारत अपनी जरूरत का 86 फीसदी कच्चा तेल विदेशों से आयात करता है।
इसमें से 60 फीसदी कच्चा तेल खाड़ी देशों से आता है। सस्ता क्रूड हमेशा भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए फायदे का सौदा होता है। महंगा क्रूड न सिर्फ देश में पूंजी खाता घाटा (आयात पर विदेशी मुद्रा व्यय और निर्यात से विदेशी मुद्रा आय के बीच का अंतर) बढ़ाता है बल्कि इसका असर देश की महंगाई दर पर भी दिखता है।
चाबहार की प्रगति में मुश्किल
ईरान में चाबहार पोर्ट का निर्माण भारत की कूटनीतिक जरूरतों के हिसाब से काफी अहम है। हाल ही में भारत ने अफगानिस्तान की तालिबान सरकार से बातचीत की है कि कैसे अफगानिस्तान को चाबहार पोर्ट से जोड़ने की योजना को आगे बढ़ाया जाए।
पिछले हफ्ते नई दिल्ली में भारत और मध्य एशियाई देशों की वार्ता हुई थी जिसमें मध्य एशिया के पांच बड़े देशों ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, उज्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान और किर्गिस्तान के विदेश मंत्री हिस्सा लेने आए थे। इस बैठक में चाबहार पोर्ट को मध्य एशियाई देशों से जोड़ने की योजना पर चर्चा हुई थी। अगर ईरान और इजरायल के बीच युद्ध की स्थिति गंभीर होती है तो यह योजना खटाई में पड़ सकती है।
दोनों सहयोगी हैं, एक को चुनना मुश्किल:
भारतीय कूटनीति के लिए ईरान और इजरायल में से किसी एक को चुनना काफी मुश्किल है। इजराइल एकमात्र ऐसा देश है जिसने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत का खुलकर समर्थन किया है। वहीं, भारत खाड़ी क्षेत्र में अपने दीर्घकालिक हितों के लिए ईरान को महत्वपूर्ण मानता है।
अमेरिकी दबाव को दरकिनार करते हुए भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने जनवरी 2024 में तेहरान का दौरा किया। उससे पहले रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने तेहरान का दौरा किया था। अक्टूबर 2024 में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान पीएम नरेंद्र मोदी ने ईरान के राष्ट्रपति मसूज पेजेशकियन से मुलाकात की थी।
मई 2025 में ईरान के विदेश मंत्री नई दिल्ली आए थे। ईरान और अमेरिका के बीच परमाणु मुद्दे पर बातचीत शुरू होने के साथ ही भारत ने ईरान के साथ अपने संबंधों को और प्रगाढ़ करने की योजना बनाई थी।